Category: अज्ञात कवि (रीतिकाल)
हौँ तो आजु घर से निकरि कर दोहनी लै , खरक गई ती जानि औसर दुहारी को । दूरि रह्यो गेह उनै आयो अति मेह , महा सोच है …
साँझ ही स्याम को लेन गई सुबसी बन मे सब जामिनि जायकै । सीरी बयार छिदे अँधरा उरझे उर झाँखर झार मझाइकै । तेरी सी को करिहै करतूति हुती …
सरकै अंग अँग अथै गति सी मिसि की रिसकी सिसिकी भरती । करि हूँ हूँ हहा हमसों हरिसों कै कका की सों मो करको धरती । मुख नाक सिकोरि …
वे उनसोँ रति को उमहैँ वे उनसोँ विपरीत को रागैँ । वे उनको पटपीत धरैँ अरु वे उनही सों निलँबर माँगैँ । गोकुल दोऊ भरे रसरँग निसा भरि योँ …
ललित लवँग लतिका सी है लचीली बाल , ऎसी जानि नेकु सक चित्त मैँ न दीजिये । भौँरन के भार सोँ नमत मँजरी न नेक , याही को उदाहरन …
टकी लरक पर भौँह की फरक पर , नैन की ढरक पर भरि भरि ढारिए । हीरे के से अमल कपोल विँहसन पर छाती उसरन पर निसँक पसारिए । …
रुचि पाय झवाय दई मेँहदी तेहिको रँग होत मनौ नगु है । अब ऎसे मे स्याम बोलावैँ भटू कहु जाँउ क्योँ पँकु भयो मगु है । अधरात अँधेरी न …
रितु पावस आई या भागन ते संग लाल के कुंजन मेँ बिहरौ । नहिँ पाइहौ औसर ऎसो भटू अब काहे को लाज लजाइ मरौ । गुरु लोग औ चौचंदहाइन …
योगी वही जो रँगै मन आपनो आन सुसँग मे ध्यान लगावै । सँत वही जो तजै ममता अरु आनन्द मे हरि के गुन गावै । पुत्र वही जो पिता …
मोर को मुकुट सीस भाल खौरि केसर की , लोचन विशाल लखि मन उमहत है । मैन कैसे केश श्रुति कुँडल बखत बेस , झलक कपोल लखि थिर ना …
मायके के बिरह मयँकमुखी दुखी देखि , भेद ताके सासुरे की मालिन बतायो है । मोपै ठकुराइन हुकुम करबोई करै , खिजमत करिबो हमारे बाँट आयो है । भौन …
मदन को मद मतवारी झूमि झाँकै , सदन थिरात न मिराति रति रँगना । प्रीतम के रूप को मया सी अचवत तन , प्यासी ये रहति जौ लहत सुख …
भारी घोड़सारन तलावन तिलाक लिख्यो , गड़िगे अकब्बर बहुरि नाहीँ बहुरे । ताके कवि बीरवर तृन सम गुन्यो नाहिँ , ऎसेहू न भये कलि कर्ण हू ते लहुरे । …
बैठ्यो अँगना मे पिय आय परदेसन सोँ , ऊपर फुहारे नभ छिरकि छिरकि जात । इत नैन पीतम के ऊपर भ्रमत उठि , उत पट खुलि खुलि भरकि भरकि …
बैठी मँच मानिक को फेरत रई को , औध माधुरी की मूरति सी सूरति सनेह की । सावन सुहावन को गावन सखीन , साथ तैसेई सोहाई आई छटा घटा …
बनवासी किये सुक पीठ निवासी , तुनीर जो बीर बिलासिका है । तिल सून प्रसून हू खेत गिरे , गुहा सेवक सिद्धि निवासिका है । भ्रुव तेग सुनैन के …
ड़े व्यभिचारी कुलकानि तजि डारी , निज आतमा बिसारी अघ ओघ के निकेत हैँ । जटा सीस धारैँ मीठे बचन उचारैँ न्यारे , न्यारे पँथ पारैँ सुभ पँथ पीठ …
फूँकि आई सबै बन को , हिय फूँकि कै मैन की आग जगावति । तू तौ रसातल बेधि गई उर , बेधति और दया नहिँ लावति । आप गई …
पौढ़ि कै किवारे देत घरै सबै गारी देत , साधुन को दोष देत प्रीति ना चलति हैँ । मांगन को ज्वाब देत बाल कहे रोय देत , लेत देत …
पीनस वारो प्रवीन मिलै तो कहाँ लौ सुगंधी सुगँध सुँघावै । कायर कोपि चढ़ै रन मे तो कहां लगि चारन चाव बढ़ावै । जो पै गुनी को मिलै निगुनी …
पावतो अहार मन भावतो अधिक , एक सेर अरहरि की जु दाल और दलतो । चूल्हो न जरायो तापै माँगत है भोजन , सरम नाहिँ तोको करि कारो मुख …
न्हातई न्हात तिहारेई स्याम कलिन्दजा स्याम भई बहुतै है । धोखेहु धोये हौँ यामे कहूँ तो यहै रँग सारिन मेँ सरसैहै । सांवरे अंग को रँग कहूँ यह मेरे …
नित चातक चाय सोँ बोल्यो करै मुरवान को सोर सुहावन है । चमकै चपला चँहु चाव चढ़ी घनघोर घटा बरसावन है । पलकौ पपिहा न रहै चुप ह्वै अरु …
ननँद निनारी सासु माइके सिधारी , अहै रैन अँधियारी भारी सूझत न करु है । पीतम को गौन कविराज न सुहात भौन , दारुन बहत पौन लाग्यो मेघ झरु …
धनि वै जिन प्रेम सने पिय के उर मे रस बीजन बोवती हैँ । धनि वै जिन पावस मे पिसिकै मेँहदी कर कँज मलोवती हैँ । धनि वै जिन …