यही आजकल मेहरबां देखते हैं, [गज़ल] मोहम्मद असलम रजा 26/04/2012 रफीक रीवानी No Comments यही आजकल मेहरबां देखते हैं, मेरा दिल जला के धुआं देखते हैं !! ….. वो क़द से बड़ा आसमां देखते हैं, कहां पर खड़े हैं कहां देखते हैं !! ….. बहुत याद … [Continue Reading...]
संगमर-मर की ना तरीफ किया कर मुझसे | [क़ता] मोहम्मद असलम रजा 19/04/2012 रफीक रीवानी No Comments संगमर-मर की न तरीफ किया कर मुझसे । आंसुओ से जो मै अह्कामे मुहम्मद लिख दूं । चूमने के लिये झुक जायेगा ये ताज-महल । टूते पत्थर पे अगर नामे मुहम्मद लिख दूं … [Continue Reading...]