Category: स्वाति नैथानी
मुलाकात…झुकी रहने दो मेरी पलकें आज,जो नजर उठाई तो ज़खम हरे हो जाऐगें ।दफन कर दो अपने सवालों को आज,जो लब खुले तो दर्द पुराने बयां हो जाएंगे।चंद लमहे …
Sitam…Har ek pal chubhta hai nashtar ki tarahJismein tune berukhi jatayeeHar ek pal lagta hai dhuyein ki tarahJismein tere saath thi baanti tanhayeeUmeed bhi ajab cheez hoti haiDuniya ke …
1) तू हासिल न होगा कभी इसका यकीन हो चला है अब मुझे धड़कनो में हो गया है शामिल इस बात का कोई गुमा न रहा 2) खुद को …
१) चंद हसीं सांसें शायद हो जाएँ हासिल गर तुझसे नफरत करना ये दिल सीख ले २) सब कहते हैं मेरे चेहरे की रौनक चली गयी कैसे कहूं वो …
मौसम की तरह …. मेरा इश्क़ निखर गया मौसम की तरह मेरा नूर बिखर गया जादू की तरह जा बसी तुझमे मैं खुशबू की तरह खो गया तू मुझ …
बस यूँ ही …. १. गैरों में रौशनी तलाशता रहा मैं मेरे अपने तो मेरा हमसाया थे चकाचौंध के परे कभी देखा ही नहीं २) तक़दीर के खंजर से …
आज़ाद या बंदिश क्या दे रहा तू किसकी है ये साजिश न मेँ जानू न तू नज़दीकी या दूरी क्या सौंप रहा तू किस्मत की ये मंज़ूरी न मैं …
ज़रा सी है ये ज़िन्दगी….. ज़रा सी है ये ज़िन्दगी क्यों लेकर चलें साथ शिकवे और शिकायतें जो लम्हे खूबसूरत मिलें वही निशानी , वही सौगात ज़रा सी है …
१) जम गए थे अश्क़ भी मेरे पिघलने दे इन्हें जी भर के इन्हे तेरी पलकों की गर्मी न जाने फिर कब मिले २) रेशम भी अब भाता नहीं …
सफर… छोटा ही सही खूबसूरत था ये सफर मुक़्तलिफ रंग देखे हसीं थी सुबहें ,शायराना हर पहर दीवानगी बना मेरा साया ख्वाब के बुलबुले में मैं तैरने लगी ज़िन्दगी …
आइना .. ये आँखें भी इक आइना हैं बहला दें , बहका दें बिन पूछे सब बतला दें कभी छुपाएं दर्द और अकेलापन कभी झलका दें दिल का दीवानापन …
जाड़ों का मौसम … लो, फिर आ गया जाड़ों का मौसम , पहाड़ों ने ओढ़ ली चादर धूप की किरणें करने लगी अठखेली झरनों से चुपके से फिर देख …
ला दोगे क्या … तारों भरी रात चाहिये मुझे ला दोगे क्या चाँद को जलने दो नैनों से पिरो लेंगे वो बारात । फूलों भरी वादी चाहिए मुझे ला …
कुछ और देर … रहने दो कुछ और देर मुझे मेरे ख्वाब के साये तले उसकी परछाँई से बात कर लूँ बस, कुछ और देर । बहने दो कुछ …
फिलहाल … (स्वाति नैथानी ) आता जाता दिन बुलाता है मुझे चाँद सूरज वादे याद दिलाते हैं मुझे फिलहाल सपनों में तैरना है मुझे। सच्ची झूठी ख्वाहिश खींचती अपनी …
सुबह से ये वादा किया शाम को अपनी ज़ुबान दी उनसे हर नज़दीकी मिटा देंगे फासलों को आगोश में ले लेंगे यादों में भी याद न करेंगे एहसास लफ्ज़ …
उसकी हसीं में लिपटा दर्द छू लिया मैंने दिल में सुलगती चिंगारी से जल गई रूह की सिसकती दास्ताँ सुन ली मैंने उसकी ख्वाहिशों के समंदर में घुल गई …
जज़्बा मंज़िलों को क्यों तलाशूँ मैं जब राहें इतनी हसीन हैं फ़िज़ा की रंगत फीकी पर गयी मेरा तो साया भी रंगीन है किस्मत से क्यों हारूँ मैं हौंसलों …