Category: सुमित्रा नंदन पंत
तुम आती हो, नव अंगों का शाश्वत मधु-विभव लुटाती हो। बजते नि:स्वर नूपुर छम-छम, सांसों में थमता स्पंदन-क्रम, तुम आती हो, अंतस्थल में शोभा ज्वाला लिपटाती हो। अपलक रह …
अंधकार की गुहा सरीखी उन आंखों से डरता है मन, भरा दूर तक उनमें दारूण दैन्य दुःख का नीरव रोदन! वह स्वाधीन किसान रहा, अभिमान भरा आंखों में इसका …
मेरे आँगन में, (टीले पर है मेरा घर) दो छोटे-से लड़के आ जाते है अकसर! नंगे तन, गदबदे, साँबले, सहज छबीले, मिट्टी के मटमैले पुतले, – पर फुर्तीले। जल्दी …
वह प्याला भर साक़ी सुंदर, मज्जित हो विस्मृति में अंतर, धन्य उमर वह, तेरे मुख की लाली पर जो सतत निछावर! जिस नभ में तेरा निवास पद रेणु कणों …