Category: निर्मला जोशी
तिमर के पाहुन किसी दिन आैर आकर भेट करना इस समय मैं ज्योति को विस्तार देने में लगी हंू। इस दिये से ही हृदय संसार सदियों —से —प्रकाशित। यह …
घोल कर मेंहदी उषा धनवान सी आई अकेली। मौन हो मन वाटिका की बिन कहे रंग दी हथेली। दृष्टि में तब खिल उठे जलजात कितने ही अचानक सुरभि सी …
मन अभी वैराग्य लेने के लिए आतुर नहीं है किंतु, मैं कुछ सोचकर ही एक चादर बुन रही हूँ। पर्वतों पर एक स्वर मुझको सुनाई दे गया था। वह …
एक यायावर किरण गत रात मेरे द्वार आई इसलिए तो बुन लिया है, गीत यह उजियार मैंने। मैं अंधेरे से अभी तक युद्ध कितने लड़ चुकी हूँ। इस पसीने …
एक परिचित जो यहाँ पिछले जनम में खो गया था इस जनम में वह मिला उसकी कहानी लिख रही हूँ। वह समंदर की कथाओं सा रहा अब तक अधूरा। …
पर्वत, नदियां हरियाली से बतियाता है, गांव। अक्षत, रोली, फूल द्वार पर रखना अपने पांव। हवा बहन गाती है कुछ-कुछ सदा सगुन के गीत। गंध-सुगंध बिखेर दिशाएं झरती झर-झर …
जिस दिन से वह ललित छंद उतरा मुंडेर पर आंखों की सरिता जैसे दर्पण लगती है। अंग-अंग जो सिहरन थी अब मंद हो गई। अनचाहे ये कलियां बाजूबंद हो …
चलते-चलते शाम हो गई, रात तुम्हारे नाम हो गई। ओ रे पंछी नील गगन के गीतों में कर रैन बसेरा। डैने हलके हो जाने से होगा तेरे नाम सवेरा। …
गीतों के हार मैं तो रही भटकती जग में शब्दों के द्वारे हर बार। कौन डालकर गया अचानक रस भीने गीतों के हार। कभी दर्द तक कहा नहीं था, …
तुम डगर की धूल हो, सुनना भला लगता नहीं है एक दिन माथे चढ़ाकर मैं इसे चंदन करूंगी। मंदिरों में आजकल मेले बहुत जुड़ने लगे हैं। किंतु भीतर के …
दर्द मेरे द्वार पर दस्तक निरंतर दे रहे हैं इसलिए मैं गीत की संभावना को जी रही हूँ। गीत का यह कोश सदियों से कभी खाली नहीं था। यह …
प्रीत जिस दिन से लगी पलने पलक की छांव लेकर इस निगोड़ी धूप को भी आ गया है, मन बदलना हाँ, मृगी के नयन में आने लगी अनुभूतियां हैं …
गीत गाने का मुझे अवकाश तो था ही नहीं पर दीप कोई जल गया तो रोशनी की याचना की। दूर तक फैली हुई थीं भाग्य की अनजान राहें साथ …
दो कुल की लाज लेकर पलती हैं बेटियाँ फिर क्यों किसी की आँख में खलती हैं बेटियाँ गहराइयों से गहरी हैं ईश्वरीय कृतियाँ घर-घर की आबरू हैं घर की …
रश्मि पत्रों पर शपथ ले मैं यही कह रही हूँ चाहते हो लो परीक्षा मैं स्वयं इम्तहान हूँ हूँ पवन का मस्त झोंका पर तुम्हें ना भूल पाई इसलिए …
सुलझने का जतन कर रही थी विकल धड़कन मेहमान मौसम का दे गया एक उलझन हो गई पहचान फिर कठिन अपने आप से एक अनबन हो चली तब पुण्य …
तुम क्या जानो हम क्या जानें क्या हुआ क्या नहीं हुआ है हाँफ रहा है समय बेचारा सुनो, किसी की यही दुआ है रंगहीन हो गई दिशाएँ बहती है …
मैं तुम्हारी बाट जोहूं तुम दिशा मत मोड़ जाना। तुम अगर ना साथ दोगे पूर्ण कैसे छंद होंगे। भावना के ज्वार कैसे पंक्तियों में बंद होंगे। वर्णमाला में दुखों …