Category: निर्मला गर्ग
मंच वायदे झंडे नारे हलचलें सारी ख़ामोश हैं खामोश हैं राजनीति के आगे मशाल लेकर चलनेवाले अश्वमेध का घोड़ा अब सरपट दौड़ेगा कौन है जो रास इसकी खींचेगा छत्रप …
अहोई अष्टमी है यह कार्तिक की तारों को पूजकर व्रत तोड़ेंगी माँएँ ये माँएँ बेटों की हैं बेटियाँ छू रहीं साक्षात् तारे तो क्या बेटियाँ बेटियाँ हैं वंश तो …
इस्त्राइल तांडव कर रहा है गज़ा मृत्यु-क्षेत्र में तब्दील हो रहा है बुश तो हमेशा अत्याचारियों के साथ रहे पर तुम ? तुम बराक हुसैन ओबामा ! तुमने भी कुछ नहीं …
गज़ा पट्टी रक्त से सनी है खुले पड़े हैं अनगिनत जख़्म अरब सागर अपनी चौड़ी तर्जनी से बरज़ रहा है इस्त्राइल को किसी की परवाह नहीं है काठ का …
फ़ेयर एंड लवली की सालाना बिक्री है आठ हज़ार करोड़…. कविता की किताब छपती है मात्र तीन सौ फ़ेयर एंड लवली = गोरा रंग गोरा रंग = सुंदर दिखना …
कामरेड शावेज़ मै तुमसे प्यार करती हूँ उसी तरह जिस तरह वेनेज़ुएला के लोग तुमसे प्यार करते है जिस तरह सारे महादेशों के शोषित वंचित तुमसे प्यार करते है …
मुझमें हवाएँ आसमान और सौरमंडल हैं इस धरती पर जो कुछ है वह सब है ख़ाली है अभी बहुत सी जगह मुझमें |
लोकप्रियता बड़े घेरे वाला वृक्ष है मैं क्या होना चाहूँगी ? पत्तियाँ चाय के पौधे की
जिस रात की कोई सुबह नहीं वह रात है गुजरात यह रात फैलाती ही जा रही है घनी होती जा रहीं उसकी दुरभिसंधियाँ सच होते जा रहे बारंबार दुहराए …
खाने की मेज़ पर जब मैं सलाद सजा रही हूँ बसरा बगदाद में टामहाक मिसाइलों की बारिश हो रही है बारिश की आँच मेज़ से गुज़रकर मेरी शिराओं में …
जिस रात की कोई सुबह नहीं वह रात है गुजरात यह रात फैलाती ही जा रही है घनी होती जा रहीं उसकी दुरभिसंधियाँ सच होते जा रहे बारंबार दुहराए …
सरल रेखाएँ सिर्फ़ ज्यामिति में होती हैं |
मेरी तरफ दौड़ा आ रहा समुद्र पता नहीं कौन-सी सूचनाएँ देना चाहता है कथा कहना चाहता है शायद जगन्नाथ की सुभद्रा की और बलराम की वह कथा नहीं जो …
मैं किसी को याद करना चाहती हूँ कहना चाहती हूँ धन्यवाद जैसा कुछ आवाज़ वहाँ तक पहुँचेगी ? वह जगह है पहाड़ के ऊपर एक छोटी-सी राशन की दूकान वहाँ …
मेरी बहनें मेरे लिए चिंतित रहती हैं मैं पूजा-पाठ तो ख़ैर करती ही नहीं ईश्वर के बारे में मेरा मानना है कि वह हमारी तरह कोई जीवित प्राणी नहीं …
करवाचौथ है आज मीनू साधना भारती विनीता पूनम राधा सज-धजकर सब जा रही हैं कहानी सुनने मिसेज कपूर के घर आधा घंटा हो गया देसना नहीं आई ४०५ वालों …
इतिहास का स्पर्श इतना सघन था वहाँ सिहर उठी थी मेरी समूची देह हट रहा था ढाई हज़ार वर्ष लंबा पर्दा मैं देख पा रही थी शिक्षा और विद्या …
खीर-पूड़ी नहीं बनाई इस बार पितर पक्ष में न पंडित जिमाए न दी दान-दक्षिणा एक पंखा ख़रीदा छत से लटकाने वाला दे आई दर्जी मज़ीद अहमद को इमारत के …
हम अकेले नहीं हैं हमारी यात्राओं के बीच यह चट्टान उपस्थित है इसके किनारे घिस चुके हैं त्वचा सख़्त है मगर रूखी नहीं रंध्रों में इसकी थकान समाई है …
भूतपूरब मुखमंत्री जयललिता जी को ग्रामसेविका राधादेवी का परनाम ‘आरयाबरत’ से मालूम हुआ आपको जेल पठा दिया गया है उहाँ आप करिया कोर बला उज्जर साड़ी पहनेंगी जैसन वहाँ …
वह बार-बार साधारणता की ओर मुड़ती । बार-बार उसे ख़ास की तरफ ठेला जाता । उसके चारों ओर पुरानी भव्य दीवारें थीं । उनमें कोई खिड़की नहीं थी सिर्फ …
कितने वर्षों से तुम अपने देश नहीं गई सितारा ? बहुमंज़िली इमारत की इस नौवीं मंज़िल पर बर्तन धोते तुम्हारे कानों में कौन-सी ध्वनि गूँज रही है तुम्हारे जन्म-स्थान खुलना …
अग्रवाल जी का कानपुर में खाद बेचने का व्यापार है श्रीमती अग्रवाल रोज़ाना सुबह तीन घंटे पूजा-पाठ में व्यतीत करती हैं अग्रवाल जी खाद में अलाँ-फलाँ मिलाते हैं अभी …
अयोध्या अयोध्या थी वह थी क्योंकि वहाँ एक नदी बहती थी वह थी क्योंकि वहाँ लोग रहते थे वह थी क्योंकि वहाँ सड़कें और गलियाँ थीं वह थी क्योंकि …
सामने वाली खिड़की पर चाय का कप लिए एक स्त्री बारिश देख रही है उसका नाम शगुफ़्ता ख़ान है बूँदों को घास-मिटटी पर पड़ते देख वैसे ही हलचल से …