Category: नीलाभ
नए साल की पहली सुबह तुम्हें क्या दूँ मैं ? एक फूल अमन के लिए, एक बन्दूक आज़ादी के लिए, एक किताब संग-साथ के लिए ? तुम्हारी आँखों के लिए नई …
विष्णु खरे के लिए काव्य-कला, रस, छन्द, अलंकार और बिम्बों के साथ-साथ इतिहास और पुराण की गहरी परख थी उन्हें और वे जानते थे कि 1917 के रूस और …
उससे मिलना मिलना है एक प्रागैतिहासिक ताड़ के गाछ से पत्तों की छतरी के नीचे सुचिक्कण काया और विचार में डूबे हुए सयाने सरीखी मुद्रा इसके फल तो आप …
इमली की तरह है मेरा दूसरा संगाती एक विराट झंखाड़ मानो झाड़ियों की दैत्याकार प्रजाति का वंशज चुहल-भरी चुटकी काटने और सनसनी पैदा करने वाले फल वैसी ही प्रकृति …
खजूर की तरह है मेरा यह मित्र आप कहेंगे भला यह कैसा मित्र हुआ छाया को नाम नहीं और फल भी लागे दूर जानता हूँ– इकहरा खड़ा रहता है …
काले-काले बाग़ों में कोयल है बोलती आज ही तो चिट्ठी आई बाँके ढोल की खोलती है चिट्ठी गोरी छज्जे पे डोलती हाय घना दुःख है चिट्ठी मुँह से क्यों …