Category: नीलम सिंह
पुरवा ! जब मेरे देश जाना मेरी चंदन माटी की गंध अपनी साँसों में भर लेना, नाप लेना मेरे पोखर मेरे तालाब की थाह कहीं वे सूखे तो नहीं, झाँक …
नहीं काट सकते अतल में धँसी मेरी जड़ों को तुम्हारी नैतिकता के जंग लगे भोथरे हथियार मत आँको मेरा मूल्य धरती आकाश से आकाश धरती से सार्थक है तुम्हारे …
शब्दों के जोड़-तोड़ से गणित की तरह हल की जा रही है जो वह कविता नहीं है अपनी सामर्थ्य से दूना बोझ उठाते-उठाते चटख गई हैं जिनकी हड्डियाँ उन …
आकाश ! कब तक ओढ़ोगे परंपरा की पुरानी चादर, ढोते रहोगे व्यापक होने का झूठा दंभ, तुम्हारा उद्देश्यहीन विस्तार नहीं ढक सका है किसी का नंगापन छोड़कर कल्पना, वास्तविकता पर …