Category: नचिकेता
क्यों नहीं हमने अभी सूँघी हवा की गंध एक क्षण ही थरथराया जिस्म था दिन का चोंच में ले उड़ी चिड़िया जब नया तिनका अचीन्हे ही रह गए अहसास …
रोशनी के नए झरने लगे धरती पर उतरने क्षितिज के तट पर धरा है ज्योति का जीवित घड़ा है लगा घर-घर में नए उल्लास का सागर उमड़ने घना कोहरा …
आना मेरी यादों में हर पल तुम आना आना जैसे सावन में हरियाली आती अंजुराई आँखों के अन्दर लाली आती पाकर नए बीज में अंकुर सा अंखुआना आना जैसे …
संगीत नीरव सोचिए क्यों इस नदी में बह रहा पानी नहीं अब इस नदी में सिर्फ बालू-रेत ही हैं, जल नहीं है सीप, घोंघे, केकड़े, पर हो रहे विह्वल …
दुनिया को निरखो न शिकारी की नज़रों से वैसे तो दुनिया में ढेरों रंग भरे हैं यहाँ खेत खलिहान, नदी, पर्वत, दर्रे हैं इन्हें बचाना होगा ज़ालिम राहबरों से …
टूट गिरा पत्ते-सा दिन धुआँ पहनने लगीं दिशाएँ दीवालों के दाएं-बाएं किरणों की नाजुक टहनी पर झूल रहा छत्ते-सा दिन गीली चिड़िया की पाँखों से चूने लगा समय आँखों …
शब्दों ने जो बात कही है सच है झूठ-प्रपंच नहीं है चटख धूप से निविड़ छाँह तक ध्वज-सी फहरी हुई चाह तक पसरी खामोशी भुतही है खुरच समय को …
फिर सवालों ने उठाईं कई शंकाएँ क्यों हरी पत्तियाँ टूटीं डाल से, सोचो उड़ गई बतखें अचानक ताल से, सोचो क्यों रहा है समय अपनी लाँघ सीमाएँ फूट आँखें …
रोशनी से मिल रहा संदेश चौखट लाँघने का उठो, मत सोए रहो, यह वक़्त है ख़ुद जागने का झर गई खिलकर सुबह तक महमहाती रातरानी जिसे हँसने चहचहाने की …
पाखी लौट घरों को आए अंधकार ने पर फैलाए थकान मिटाने को दिन भर की सोयीं आँखें गाँव-नगर की घर, आँगन, छप्पर अलसाए अंधकार ने पर फैलाए जागी दुनिया …
रंग से परे झरे पत्ते पतझरों की मार से हैं डरे पत्ते मारतीं थप्पड़ हवाएं हरी टहनी थरथराए पीलिया से ग्रस्त लगते हरे पत्ते है न कोई जान इसमें …
दिन कैसे बदलेंगे हवा नहीं बदली तो खिड़की, रोशनदान खुले पर, घनी उमस है बदहवास मन में बेचैनी गयी अड़स है खुशबू नहीं मिलेगी अगर न खिली कली तो …
मैं कैसे बदलूँ जैसे दिन रोज़ बदलता है रोज़ बदल जाती जैसे कैलेण्डर की तारीख़ राजभवन की अक्सरहाँ बदला करती है सीख रंग बदलते मौसम से मन बहुत दहकता …
मुझे विश्वास है एक दिन बदल जाएगी ये दुनिया एक दिन बदल जाएगी यह धरती एक दिन बदल जाएगा आकाश मुझे विश्वास है एक दिन पिस्तौलों से निकलेंगे फूल …
जब-जब मैंने तेरे मन के अंदर झाँका है वहाँ मिला है मुझे प्यार का पसरा सहज उजास हर मौसम में खिलनेवाला टुहटुह लाल पलास गूंज रहा कण-कण में मृदु …
महकी बेला नागफनी से बिंधकर भी महकी बेला तेज धूप है चलती गर्म हवा भी है पर, इसकी परवाह न इसे जरा भी है हरसिंगार से आंख मिला टहकी …
भूख बँटे पर, जिजीविषा की प्यास नहीं बाँटूंगा गर्दन भी काटूंगा केवल घास नहीं काटूंगा। निम्बू जैसा ही निचोड़ कर पिया हमारा ख़ून नफ़रत की भाषा में लिखकर मज़हब …
जब से देखा तुमको भूल नहीं पाया हूँ जबसे देखा मुझे लगी बेहद अपनी-सी आंखों को पहचान दिलाती भौं, पिपनी सी एकाकीपन में भी खुलकर मुसकाया हूँ तुम्हें देखकर …
कुशल-क्षेम से पिया-गेह में बहन तुम्हारी है सुबह सास की झिड़की वदन झिंझोड़ जगाती है और ननद की जली-कटी नश्तरें चुभाती है पूज्य ससुर की आँखों की बढ़ गयी …
बजा हथौड़ा ठन-ठन-ठन मिटके रहेगा अब शोषण यह नकली आज़ादी भी ख़ून हमारा पीती है औ’ सरमायेदारों की बस्ती में ही जीती है हँसिये की है भौंह तनी मिटके …
फूले फूल पलाश कि सपने पर फैलाए रे फिर मौसम के लाल अधर से मुस्कानों की झींसी बरसे आमों के मंजर की खुशबू पवन चुराए रे पकड़ी के टूसे …
दुनिया बदली मगर प्यार का रंग न बदला अब भी खिले फूल के अन्दर खुशबू होती है गहरी पीड़ा में अक्सर हाँ आँखें रोती हैं कविता बदली, पर लय-छंद-प्रसंग …
नज़र मौसम की हवाओं की चाल पर है नज़र मौसम की कहाँ तीखा घाम बरखा कहाँ होनी है किस जगह के चेहरे की मैल धोनी है कहाँ गूँजेगी ध्वनि …
खोले पर आ गई दुपहरी हवा चुभौती तेज़ सुई-सी चकमक-चकमक धूप रुई-सी फैली चारों ओर घास पर डाल मसहरी अलसाये-से पत्ते डोले भेद थकन का मौसम खोले कुतर रही …
नदी के दोनों तटों पर बराबर जल-धार लिखना रात के तन पर सुबह का उजाला हर बार लिखना आँख में सपने, अधर पर मखमली मुस्कान लिखना ख़ुशबुओं के छंद …