Category: महादेवी वर्मा
चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना! जाग तुझको दूर जाना! अचल हिमगिरि के हॄदय में आज चाहे कम्प हो ले! या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित …
मैं नीर भरी दु:ख की बदली! स्पंदन में चिर निस्पंद बसा, क्रन्दन में आहत विश्व हंसा, नयनों में दीपक से जलते, पलकों में निर्झरिणी मचली! मेरा पग-पग संगीत भरा, …
क्या जलने की रीति शलभ समझा दीपक जाना घेरे हैं बंदी दीपक को ज्वाला की वेला दीन शलभ भी दीप शिखा से सिर धुन धुन खेला इसको क्षण संताप …
किन उपकरणों का दीपक, किसका जलता है तेल? किसकि वर्त्ति, कौन करता इसका ज्वाला से मेल? शून्य काल के पुलिनों पर- जाकर चुपके से मौन, इसे बहा जाता लहरों …
कहाँ से आए बादल काले? कजरारे मतवाले! शूल भरा जग, धूल भरा नभ, झुलसीं देख दिशाएँ निष्प्रभ, सागर में क्या सो न सके यह करूणा के रखवाले? आँसू का …
प्रिय चिरन्तन है सजनि, क्षण क्षण नवीन सुहागिनी मैं! श्वास में मुझको छिपा कर वह असीम विशाल चिर घन, शून्य में जब छा गया उसकी सजीली साध-सा …
पंथ होने दो अपिरिचत प्राण रहने दो अकेला! और होंगे चरण हारे, अन्य हैं जो लौटते दे शूल को संकल्प सारे; दुखव्रती निर्माण-उन्मद यह अमरता नापते पद; बाँध …
मधुर मधुर मेरे दीपक जल! युग युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल प्रियतम का पथ आलोकित कर! सौरभ फैला विपुल धूप बन; मृदल मोमु-सा घुल रे मृदु तन; दे प्रकाश …
कौन तुम मेरे हृदय में? कौन मेरी कसक में नित मधुरता भरता अलिक्षत? कौन प्यासे लोचनों में घुमड़ घिर झरता अपिरिचत? स्व्रर्ण स्वप्नों का चितेरा नींद के सूने निलय …
तुम मुझमें प्रिय! फिर परिचय क्या तारक में छवि, प्राणों में स्मृति पलकों में नीरव पद की गति लघु उर में पुलकों की संसृति भर लाई हूँ तेरी चंचल …