Category: कविता किरण
है समंदर को सफ़ीना कर लिया हमने यूँ आसान जीना कर लिया अब नहीं है दूर मंजिल सोचकर साफ़ माथे का पसीना कर लिया जीस्त के तपते झुलसते जेठ …
व्यर्थ नहीं हूँ मैं! जो तुम सिद्ध करने में लगे हो बल्कि मेरे कारण ही हो तुम अर्थवान अन्यथा अनर्थ का पर्यायवाची होकर रह जाते तुम। मैं स्त्री हूँ! …
वापस न लौटने की ख़बर छोड़ गए हो मैंने सुना है तुम ये शहर छोड़ गए हो दीवाने लोग मेरी कलम चूम रहे हैं तुम मेरी ग़ज़ल में वो …
लो समंदर को सफ़ीना कर लिया, हमने यूँ आसान जीना कर लिया। अब नहीं है दूर मंज़िल सोचकर, साफ़ माथे का पसीना कर लिया। जीस्त के तपते झुलसते जेठ …
दिल में अरमाँ जगा लिया मैंने, दिन ख़ुशी से बिता लिया मैंने। इक समंदर को मुँह चिढ़ाना था, रेत पर घर बना लिया मैंने। अपने दिल को सुकून देने …
रिश्ते! गीली लकड़ी की तरह सुलगते रहते हैं सारी उम्र। कड़वा कसैला धुँआ उगलते रहते हैं। पर कभी भी जलकर भस्म नही होते ख़त्म नही होते। सताते हैं जिंदगी …
गर सारे परिंदों को पिंजरों में बसा लोगे सहरा में समंदर का फ़िर किससे पता लोगे? ये सोच के हम भीगे पहरों तक बारिश में तुम अपनी छतरी में …
मोम के जिस्म जब पिघलते हैं तो पतंगो के दिल भी जलते हैं जिनको ख़ुद पर नहीं भरोसा है भीड़ के साथ-साथ चलते हैं दिन में तारों को किसने …
वत्सला से वज्र में ढल जाऊंगी, मैं नहीं हिमकण हूँ जो गल जाऊंगी। दंभ के आकाश को छल जाऊंगी, मैं नहीं हिमकण हूँ जो गल जाऊंगी। पतझरों की पीर …
मुझमें जादू कोई जगा तो है मेरी बातों में इक अदा तो है नज़रें मिलते ही लडखडाया वो मेरी आँखों में इक नशा तो है आईने रास आ गये …
बात छोटी है मगर सादा नहीं प्यार में हो कोई समझौता नहीं तुम पे हक हो या फलक पे चाँद हो चाहिए पूरा मुझे आधा नहीं दिल के बदले …
बहुत है ख़ामोशी तुम्ही कुछ कहो ना है हरसू उदासी तुम्ही कुछ कहो ना मैं पतझड़ का मौसम हूँ चुप ही रहा हूँ ओ गुलशन के वासी! तुम्ही कुछ …
निकला करो इधर से भी होकर कभी कभी आया करो हमारे भी घर पर कभी कभी माना कि रूठ जाना यूँ आदत है आप की लगते मगर है ये …
नामुमकिन को मुमकिन करने निकले हैं, हम छलनी में पानी भरने निकले हैं। आँसू पोंछ न पाए अपनी आँखों के और जगत की पीड़ा हरने निकले हैं। पानी बरस …
गुज़रो न बस क़रीब से ख़याल की तरह आ जाओ ज़िंदगी में नए साल की तरह कब तक तने रहोगे यूँ ही पेड़ की तरह झुक कर गले मिलो …
धूप है, बरसात है, और हाथ में छाता नहीं दिल मेरा इस हाल में भी अब तो घबराता नहीं मुश्किलें जिसमें न हों वो जिंदगी क्या जिंदगी राह हो …
दोस्ती किस तरह निभाते हैं, मेरे दुश्मन मुझे सिखाते हैं। नापना चाहते हैं दरिया को, वो जो बरसात में नहाते हैं। ख़ुद से नज़रें मिला नही पाते, वो मुझे …
दिल पे कोई नशा न तारी हो, रूह तक होश में हमारी हो। चंद फकीरों के संग यारी हो, मुट्ठी में कायनात सारी हो। हैं सभी हुस्न की इबादत …
डूबना तेरे ख्यालों में भला लगता है तेरी यादों से बिछड़ना भी सजा लगता है क्यों क़दम मेरे तेरी और खिंचे आते हैं तेरे घर का कोई दरवाज़ा खुला …
जिसकी आँखों में सिर्फ पानी है वो ग़ज़ल आपको सुनानी है अश्क कैसे गिरा दूँ पलकों से मेरे महबूब की निशानी है लब पे वो बात ला नहीं पाए …
जिंदगी को जुबान दे देंगे धडकनों की कमान दे देंगे हम तो मालिक हैं अपनी मर्ज़ी के जी में आया तो जान दे देंगे रखते हैं वो असर दुआओं …
ज़ुल्फ़ जब खुल के बिखरती है मेरे शाने पर बिजलियाँ टूट के गिरती हैं इस ज़माने पर हुस्न ने खाई क़सम है नहीं पिघलने की इश्क आमादा है इस …
ज़िन्दगी को इक नया-सा मोड़ दे, अपनी कश्ती को भंवर में छोड़ दे। हौसले की इक नई तहरीर लिख, खौफ़ की सारी हदों को तोड़ दे। फ़िर किसी इज़हार …
ज़ख्म ऐसा जिसे खाने को मचल जाओगे इश्क की राहगुज़र पे न संभल पाओगे मैं अँधेरा सही सूरज को है देखा बरसों मेरी आँखों में अगर झांकोगे जल जाओगे …
चैन हासिल कहीं नहीं होता, आपको क्यों यकीं नहीं होता। नहीं होता ख़ुदा ख़ुदा जब तक, आदमी आदमी नहीं होता। आप हैं सामने हमारे और, हमको फिर भी यकीं …