Category: ज्योत्स्ना शर्मा
23 मन यूँ ना मुरझाना बीत गईं खुशियाँ गम को भी टुर जाना । 24 रुत बदली -बदली है अपना राज लगे अपनी -सी ढपली है । 25 हम …
12 कल बात कहाँ छोड़ी सच तक जाती थी वो राह कहाँ मोड़ी । 13 नस नस में घोटाला तन उनका उजला पर मन कितना काला ! 14 कैसे …
1 व्यथा कथाएँ धरा जब सुनाये सिन्धु उन्मन । 2 न घोलो विष जल जीव व्याकुल तृषिता धरा । 3 कराहें कभी वन ,वृक्ष ,कलियाँ अश्रु निर्झरा । 4 …
उड़ ही गई \ रजनी की चूनर \ सितारों वाली । लगी झाँकने \ पूरब के शिखर \ ऊषा की लाली ।। खिला गगन \ महकता -सा मन …
1 दीपक बाती से कहे ,तुम पाओ निर्वाण । मेरी भी चाहत जलूँ ,जब तक तन में प्राण ।। 2 कटते -कटते कह रही,वन के मन की आग …
डॉ ज्योत्स्ना शर्मा 1 रुत ये वासंती है चरणों में हमको ले लो ये विनती है । 2 दो बूँद दया बरसे हम भी हैं तेरे फिर कौन …