Category: जेन्नी शबनम
आज़ादी कुछ-कुछ वैसी ही है जैसे छुटपन में पांच पैसे से खरीदा हुआ लेमनचूस जिसे खाकर मन खिल जाता था, खुले आकाश तले तारों को गिनती करती वो बुढ़िया …
कुछ रिश्ते बेनाम होते हैं जी चाहता है कुछ नाम रख ही दूँ क्या पता किसी ख़ास घड़ी में उसे पुकारना ज़रुरी पड़ जाए जब नाम के …
कहो ज़िन्दगी आज का क्या सन्देश है किस पथ पे जाना शुभ है किन राहों पे अशुभ घड़ी का दोष है ? कहो ज़िंदगी आज कौन -सा दिन …