Category: जया झा
हो रही है बेचैनी सी, कुछ तो लिखना है मुझे, ना हो बात जो ख़ुद पता पर, वो कोई कैसे कहे? इंतज़ार की आदत जिसको, बरसों से है हो …
सवाल कईयों ने पूछे हैं, मैं पहली नहीं हूँ। सवाल सभी पूछते हैं, मैं अकेली नहीं हूँ। पर बहुत से लोग सवाल पूछ-पूछ कर थक गए। जवाब मिलने की …
किसी और को सौंप दूँ तो क्या क़िस्मत तो वो मेरी ही रहेगी। जो लिख गई लिखने वाले के हाथों कहानी तो वो वही कहेगी। आँखें मूंद भी लूँ …
देखा हमें बेरुखी से कई चैनल बदलते हुए ठंडी साँस ले कर उन्होंने कहा, “रविवार की एक फ़िल्म के लिए मचलने वाले, हाय, वो सीधे दिन गए कहाँ।” उन्हें …
सब आ जाते रास्ते पर मैं ही तो बेराह नहीं? सबके दिन फिरते रब तक जाती मेरी आह नहीं। छिन जाता है ये भी, वो भी, हँस कर पर …
मन के पीछे चलने वाले, मन के साथ भटकना होगा। हाँ, अभी देखी थी मन ने रंग-बिरंगी-सी वह तितली फूल-फूल पे भटक रही थी जाने किसकी खोज में पगली। …
चला गया जो भी आया था, बस क़लम रह गई साथ। किसी और का वो साया था, धुंधली-सी रह गई याद। गीत कभी गाए थे मैंने, भूल गई हूँ …
बचपन में बताया था किसी ने कि तारे उतने पास नहीं होते जितने दिखते हैं। नहीं समझी थी मैं तब, अब समझती हूँ। बचपन में बताया था किसी ने …
तरस गई हूँ मैं पथरा गई आँखें। देख चुकी रास्ता कई बार जा के। पूछा पड़ोसियों से उसे देखा है कहीं। पागल समझते हैं मुझे लोग सभी। बहुत मन्नतें …
देखने में रास्ता छूट गए हैं सब नज़ारे, मिल गई मंज़िल मग़र कब मिलेंगे अब नज़ारे। नहीं थी देनी फुर्सत गर देख पाने की हमें, रास्तों के बगल मे …
जो है मन में उनसे अब कविताएँ नहीं बनती। डुबाए बिना जो भिगो जाएँ, धाराएँ नहीं बहती। खुशियाँ बेरुखी सही, पर दर्द भी रसहीन है। बंजर मिट्टी पर कभी …
पागलपन है पर पागलपन से ही दुनिया चलती जैसे। इंसानों के लिए इंसानियत सौ बार देखो गिरती कैसे। चिल्ल-पौं ये भाग दौड़, इक दूजे पर गिरना-पड़ना। गर्व से कहना,”हम …
घाव किसी के भरते नहीं सहलाने से कभी उन्हें तो ढँक कर छोड़ देना ही अच्छा है। जाता नहीं दर्द दास्ताँ सुनाने से कभी उससे तो बस मुँह मोड़ …
तिनके जोड़ लोगो को घर बनाते देखा है। बाढ़ में बहते हुए घर को बचाते देखा है। गिरते हुए घर को मज़बूत कराते देखा है। शायद कभी गुस्से में …
गाए हैं बहुत ही मैंने, सुख और दुःख के गीत आओ सुनाऊँ आज खालीपन का भी संगीत। महसूस की है तुमने रागिनी जो बजती है जब बाहों में होकर …
कौन सा है रास्ता जो यों मुझे बुला रहा? धुंधला ये स्वप्न मुझे कौन है दिखा रहा? बदली कई बार मग़र राह अभी मिली नहीं चलने को जिसपर मेरा …
कहाँ ढंढ़ूँ मैं अपना जहाँ अपनी ज़मीं और आसमाँ। सपनों में अक्सर देखा है फूल वो खिलता है कहाँ? तारों से जो झरता है किसने देखा है वो झरना? …
कभी ज़िन्दग़ी को हाथ से फिसलते देखा है? कोई वज़ह नहीं कि जी न सकें, हाथ में रखा जाम पी न सकें। मजबूत हाथों के होते भी, फिसलन की …
अब वो मेरा जहाँ नहीं, ज़मीं नहीं आसमाँ नहीं। कुछ बदला हो ना बदला हो मेरे लिए वो शमाँ नहीं। हाँ बीता सारा जीवन पर मन कहता है अब …
है नहीं कुछ फिर क्यों भारी मन है, दिन के अंत में कैसा अधूरापन है? बोझिल आँखें, चूर बदन हैं, थके कदम से कहाँ रास्ता मंज़िल का भला पाता …
कभी ज़िन्दग़ी को हाथ से फिसलते देखा है? कोई वज़ह नहीं कि जी न सकें, हाथ में रखा जाम पी न सकें। मजबूत हाथों के होते भी, फिसलन की …