Category: गुरमीत बेदी
हो सके तो तुम्हारे पास जितने भी रंग हैं और जितनी कल्पनाएँ तुम इस कैनवस पर उड़ेल दो इन्हें में कोई एक रंग चुनकर किसी सपने में भर लूँगा …
सफ़र पर यह वक्त शब्दों के दीये जलाने का है कहा एक कवि ने और मैंने सचमुच एक दीया जलाकर आँगन में रख दिया वह लड़ता रहा अंधेरे से …
रेत के घरौंदे जाने से पहले मुझे पूरे करने हैं कई अधूरे काम मसलन करना है एक नदी से संवाद जो बहती है मेरे अगल-बगल लिखना है एक लंबा …
कवि के भीतर अगर आप उतरें किसी कवि के भीतर कहीं गहरे तक तो आपको सहज ही दिखेंगे वहाँ धूप-छाँव के रंग वह किस तरह कोहरे की दीवारें गिरा …
अपने भीतर धूप की शरारत के बावजूद जैसे धरती बचाकर रखती है थोड़ी-सी नमी अपने भीतर पहाड़ बचाकर रखते हैं कोई हरा कोना अपने वक्ष में तालाब बचाकर रखता …