Category: गीता चौहान
तुम पारस प्रस्तर हो जैसे, छू तुमको सोना बन जाऊं . तुम दीप बनो जगमग-जगमग, मैं बाती बन जल जाऊं. तेरा आना मेघ मल्हारों सा तेरा जाना अश्रु धारों …
‘तुम’ तुम पारस प्रस्तर हो जैसे, छू तुमको सोना बन जाऊं . तुम दीप बनो जगमग-जगमग, मैं बाती बन जल जाऊं.
आज फिर आँखें नम औ दम घुटने को है, लगता है कविता जन्मने को है. वर्षों बीते हमें, जी भर रोये हुए, किसी काँधें पे बेसुध सोये हुए. अपनी …