Category: गीत चतुर्वेदी
बुद्धिमान लोगों की तरह बोलो नहीं तो ऐसा बोलो जिससे आभास हो कि तुम बुद्धिमान हो बोलने से पहले उन तलवारों के बारे में सोचो जो जीभों को लहर-लहर …
उन दो औरतों के लिए जिन्होंने कुछ दिनों तक शहर को डुबो दिया था दरवाज़ा खोलते ही झुलस जाएँ आप शर्म की गर्मास से खड़े-खड़े ही गड़ जाएँ महीतल, …
उस आदमी के लिए जो अपनी क़ब्र मे ज़िंदा है तुम्हें विधायक का सम्मान करना था जिसके लिए ज़रूरी था झुकना तुम्हें हाथ पीछे बांध लेने थे और बताना …
`मीट लोफ़´ के संगीत के लिए साँप पालने वाली लड़की साँप काटे से मरती है गले में खिलौना आला लगा डॉक्टर बनने का स्वांग करती लड़की ग़लत दवा की …
उसकी कहानी में कोई भी आ सकता है पर उसका जाना वह ख़ुद तय करती है गुड़ियों से खेलती है क्ले से फूल बनाती है ज़्यादातर समय आप उसे …
कोशिश करता हूँ किसी भी अभिव्यक्ति से किसी को भी ठेस न पहुंचे जिस पेशे में हूँ मैं वहां किसी गुनाह की तरह कठिन शब्दों को छाँट देता हूँ …
आत्महत्या का बेहतरीन तरीक़ा होता है इच्छा की फ़िक्र किए बिना जीते चले जाना पाँच हज़ार वर्ष से ज़्यादा हो चुकी है मेरी आयु अदालत में अब तक लम्बित …
शकरपारे की लम्बी डली को छाँपे चिपकी चीटियाँ हैं या सन 47 में बँट गई ज़मीन के उस पार से आती ठसाठस कोई ट्रेन ०० सबसे बड़ा छल इतिहास …
’निर्वासन के दिनों में एक छोटे द्वीप पर नेरूदा के साथी के लिए अपने कमरे में लेटा पोस्टमैन है जो नेरूदा को पहुँचाता था डाक हालाँकि उन्हें गए अरसा …
रात में हम ढेर सारे सपने देखते हैं सुबह उठकर हाथ-मुँह धोने से पहले ही भूल जाते हैं हमारे सपनों का क्या हुआ यह बात हमें ज्यादा परेशान नहीं …
बॉब डिलन के गीतों के लिए और उस आदमी को तो मैं बिल्कुल नहीं जानता जो सिर पर बड़ा-सा पग्गड़ हाथों में कड़ों की पूरी बटालियन आठ उंगलियों में …
पिता पचपन के हैं पैंसठ से ज़्यादा लगते हैं पच्चीस का भाई पैंतीस से कम का क्या इक्कीस का मैं तीस-बत्तीस का दिखता हूं माँ-भाभी भी बुढ़ौती की देहरी …
मालिक को ख़ुश करने के लिए किसी भी सीमा तक जाने वाला मानवीय दिमाग़ और अपनी नस्ल का शुरुआती जूता राजकुमारी महल के बाग़ में विचर रही थीं कि …
यह नीम का पौधा है जिसे झुक कर और झुक कर देखो तो नीम का पेड़ लगेगा और झुको, थोड़ा और मिट्टी की देह बन जाओ तुम इसकी छाँह …
मराठी कवि स्व. भुजंग मेश्राम के लिए पीड़ाओं का विकेंद्रीकरण हो रहा है और दुख का निजीकरण दर्द सीने में होता है तो महसूस होता है दिमाग में दिमाग …
बहुत ख़ुश लगा पड़ा था और यहाँ-वहाँ देखते थोड़ा गर्व भी अग़ल-बग़ल बैठे थे जो थोड़ा-थोड़ा कनखियों से झाँक लेते तो सामने वाला पूरा का पूरा झुक पड़ा था …
वाटरलू पर लिखी गई हैं कई कविताएँ पानीपत पर भी लिखी गई होंगी कार्ल सैंडबर्ग ने तो एक कविता में घास से ढाँप दिया था युद्ध का मैदान यहाँ …
वह आदमी कल शिद्दत से याद आया जिसकी हर बात पर मैं भरोसा कर लेता था उसने मुस्कुरा कर कहा गंजे सिर पर बाल उग सकते हैं मैंने उसे …
उसके बाल बिखरे हुए थे, दाढ़ी झूल रही थी कपड़े गंदे थे, हाथ में थैली थी… उसके रूप का वर्णन कई बार कहानियों, कविताओं, लेखों, ऑफ़बीट ख़बरों में हो …
अलग-अलग जगहों से आए कुछ लोगों का एक गैंग है इसमें पान टपरी पर खड़े शोहदे हैं, मंदिरों-मस्जिदों पर पेट पालते कुछ धर्मगुरु हैं, कुछ लेखक हैं, थोड़े अजीब-से …
उस लड़के के लिए जिसकी पहली गेंद पर मैं बोल्ड हो जाता था कुछ चेहरे होते हैं जिनके नाम नहीं होते कुछ नामों के चेहरे नहीं होते जैसे दो …
तुम इतनी देर तक घूरते रहे अंधेरे को कि तुम्हारी पुतलियों का रंग काला हो गया किताबों को ओढा इस तरह कि शरीर कागज़ हो गया कहते रहे मौत …
चारों तरफ़ बिखरे हैं काग़ज़ एक काग़ज़ पर है किसी ज़माने का गीत एक पर घोड़ा, थोड़ी हरी घास एक पर प्रेम एक काग़ज़ पर नामकरण का न्यौता था …
कोई एक नाम ज़रूर होगा इस पेड़ का मेरे लिए पेड़ सिर्फ़ एक पेड़ है फूल सिर्फ़ एक फूल रास्ते ने ओढ़ रखी है पेड़ से झरते फूलों की …
मैं जागता हूँ देर तक कई बार सुबह तक कमरे में करता हूं चहलक़दमी फ़र्श पर होती है धप्-धप् की ध्वनि जो नीचे के फ्लैट में गूँजती है कोई …