Category: देवयानी
यूँ ही उसके क़दमों की आहट सुनाई नहीं देती खटकाता है वह कुंडी इस तरह मानो डरता हो कहीं जाग ना जाए दीवार पर सोई छिपकली इस तरह आता …
एक दिन बोली वह अच्छा अब चलती हूँ और चली गई दूर कहीं कई दिनों तक नहीं हुई हमारी मुलाकात शुरू में मैं समझती रही ऐसे भी कोई जाता …
उदासी ने फिर बिखेर लिए हैं अपने बाल अकेलेपन के आगोश में गिरती चली जा रही हूँ
यह धरती जो उर्वरा है स्वप्न उर्वरा, इच्छा उर्वरा इस धरती को इंतज़ार है एक बारिश, एक बूंद का।
अहसासों का बस्ता अटारी पर रखा है अलमारी में बंद पड़ी हैं इच्छाएँ एक देह है जो बिछी है घर के दरवाज़े से लेकर रसोई, बैठक और बिस्तर तक …