Category: चंद्रभानु भारद्वाज
उतरते देवता इक मूर्ति इंसानी बनकर; कभी अम्मा कभी दादी कभी नानी बनकर। दिखाते घुप अंधेरे में उजाले की किरणें, नमाजें प्रार्थना अरदास गुरबानी बनकर। हंसाते जब कहीं रोता …
ज़िन्दगी बचकर किधर आए बता अब क्या करें; हर तरफ़ तू ही नज़र आए बता अब क्या करें। भोर में घर से उडाये जो पखेरू याद के, फ़िर मुडेरों …
कहीं तो द्वार ने रोका कहीं दीवार ने रोका; सचाई को गवाही से कहीं तलवार ने रोका। उजागर हो गई होतीं वो करतूतें सभी काली, ख़बर को आम होने …
न धरती है न अब आकाश अपना; हमारे संग है विश्वास अपना। गड़ाया पीठ में चाकू उसीने, समझते थे जिसे हम ख़ास अपना। उमर के प्रष्ट कुछ भीगे हुए …
वृद्ध असमय ही जवानी हो गई; ज़िन्दगी किस्सा कहानी हो गई। रेत बनकर रह गई बहती नदी, और जड़ चंचल रवानी हो गई। वक्त का हर बोझ कन्धों पर …
आँख में आसमान रखना; एक ऊंची उड़ान रखना। पत्थरों का मिजाज़ पढ़कर, ठोकरों का गुमान रखना। सिर्फ़ छू कर न लौट आना, चोटियों पर निशान रखना। गिद्ध नज़रें लगीं …
मानता था मन सगा जिसको दगा देकर गया; प्यार अक्सर ज़िन्दगी को इक सज़ा देकर गया। दर्द जब कुछ कम हुआ जब दाग कुछ मिटने लगे, घाव फ़िर कोई …
जब फसल में फूल फलियाँ बालियाँ आने लगीं; खेत में चारों तरफ से टिड्डियाँ आने लगीं। आम का इक पेड़ आंगन में लगाया था कभी, पत्थरों से घर भरा …
तनिक सरहदें लाँघ कर देखते हैं; उधर की हवा झाँक कर देखते हैं। मरीं हैं कि जिन्दा हैं संवॅदनाऍं , कहीं लाश इक टाँग कर देखते हैं। खुली लाश …
कमजोर पत्थर के बने आधार भी देखे, ढहते हुए पुख्ता दरो-दीवार भी देखे। ढलता न था सूरज जहाँ होती न थीं रातें, मिटते हुए वे राज वे दरबार भी …
सरहदों पर डट रहे बांके युवाओं को प्रणाम; देश पर जो बलि चढ़ीं उन आत्माओं को प्रणाम। काट कर टुकड़ा जिगर का सौंपतीं जो देश को, उन बहादुर बेटिओं …
कल्पनाओं में सुनहरा रंग कब भरने दिया; कामनाओं को यहाँ उन्मुक्त कब उड़ने दिया। चाहते थे ज़िन्दगी तो ज़िन्दगी ही छीन ली, मौत चाही तो सहज सी मौत कब …
हृदय की राजधानी का तनिक हिस्सा बना लेते; हमें अपनी कहानी का तनिक हिस्सा बना लेते। हवायें रुख बदल लेतीं ज़माना साथ हो लेता, नज़र की मेहरबानी का तनिक …
पंख ही काफ़ी नहीं हैं आसमानों के लिए; हौसला भी चाहिए ऊंची उड़ानों के लिए। गाड़ने हैं जो फसल की चौकसी को खेत में, चाहिए मजबूत खंभे उन मचानों …
नीद की इक किताब रखना; करवटों का हिसाब रखना। पत्थरों का मिजाज़ पढ़ना, हाथ में फ़िर गुलाब रखना। हर डगर में सवाल होंगे, हर कदम पर जवाब रखना। धड़कनों …
कठिनाइयों को ज़िन्दगी का प्यार मानना; ठोकर लगे तो जीत का इक द्वार मानना। रखना निगाहों में सदा तारे बिछे हुए, कांटा चुभे तो फूल की बौछार मानना। सुलगा …
हों बंद पलकें रोशनी भीतर दिखाई दे; तो ज़िन्दगी कुछ और भी सुंदर दिखाई दे। जब आदमी की आस्था विश्वास तक पहुंचे, तो राह का कंकर दया शंकर दिखाई …
चार तिनके जुटा घोंसला तो बना; ज़िन्दगी का कहीं सिलसिला तो बना। इक पहल एक रिश्ता बने ना बने, जान पहचान का मामला तो बना। कुछ कदम तुम बढ़े …
दीप को वर्तिका से मिलाए बिना; ज्योति कैसे जलेगी जलाए बिना। स्वप्न आकार लेगें भला किस तरह, हौसलों को अगन में गलाए बिना। ज़िन्दगी में चटक रंग कब भर …
हवाओं का भरोसा है न मौसम का भरोसा है; चमन को अब बहारों का न शबनम का भरोसा है। विषैली बेल शंका की उगी विश्वास की जड़ में, न …
ज़िन्दगी को कभी आजमा तो सही; एक सपना पलक पर सजा तो सही। पाँव ऊँचाइयों के शिखर छू सकें, सोच को पंख अपने लगा तो सही। बाजुओं में सिमट …
सूखती झील में काइयाँ रह गईं; हंस सब उड़ गए मछलियाँ रह गईं। रेत सी उम्र कण कण बिखरती रही, हाथ खाली बँधी मुट्ठियाँ रह गईं। सत्य को बिन …
मूल कविता हूँ मैं मेरा अनुवाद तुम; मेरे लेखन की हो एक बुनियाद तुम। मैं अमर शब्द हूँ तुम अमर काव्य हो, हूँ परम ब्रह्म मैं हो अमर नाद …
प्यार की इक उमर करवटों में कटी; चाहतों में कटी आहटों में कटी। हो प्रतीक्षा की या हो विरह की घड़ी, खिड़कियों में कटी चौखटों में कटी। जिनके प्रियतम …
प्यार ने आग पानी को देखा नहीं; होम होती जवानी को देखा नहीं। ताज ठुकरा दिया बोझ सिर का समझ, प्यार ने हुक्मरानी को देखा नहीं। प्यार की राह …