Category: बिमला ढिल्लन
सांझ ढले – सूर्य जब खो जाता है अस्ताचल की ओर, ना जाने क्यूं – पूर्व दिशा में निरन्तर उठती मेरी आंखे, सूर्य को ढूंढती हैं । तभी पत्तों …
ऊषा की बेला में नव उदित सूर्य की मनमोहक लालिमा में, मैने तुम्हें ढूंढा -पा लेना चाहा; पर तू ना मिला । नयन भटकते रहे – खोज में तेरी …
रंग बिरंगे उलझे धागे, सुलझाने में मैं उलझा हूं । क्यूं उलझे और कैसे उलझे इन प्रश्नों में मन उलझा है । कभी इधर से कभी उधर से, सिरा …
ऐ साए -तू क्या है ? कहां हैं वो तेरे चहकते हुए साथी थी प्यारी जिन्हें तेरी हर डाली डाली ? ” मै साया नहीं – प्राण मुझ में …
मेरे घर के एक कोने में अन्धेरा रहता है । दीप जलाता हूं -ताकि अन्धेरे को ना देखूं, पर आंखें लौ से ऊपर, धूंये पर टिक जाती हैं । …
दूर – अन्धेरे में चलते-चलते जब कभी कोई चिन्गारी- जुगनू सी जल उठती है- घन्टों से अपलक टिकी- मेरी तन्त्रा को – एक सुखमय झटका सा दे जाती है …
मद मन्द पवन संग उड़ते उड़ते – पूछा पन्छी ने साथी से – “क्यों चुप हो’? “कुछ तो बोलो प्रिय – मन की कुन्ठन कुछ खोलो प्रिय ‘! खोया-खोया …
बिन्दू बिन्दू जोड़ जोड़ के रेखाओं का खेल खेलते मैं और तुम – मेरी रेखा -तेरी रेखा मैंने खींची -तूने खींची, खेल खेल में कितनी दीवारें – खेल खेल …
ऐ दीप! तू क्यों जलता है ? क्यों तिल -तिल कर. अपना सर्वस्व लुटाता है ? जग की राहें उजियारी कर जीवन अपना अन्धकार बनाता है ? हूं दीप …
क्षितिज कहां है ? मेरा क्षितिज कहां है ? वह देखो जहां गगन झुका है, जहां धरा के छोर उठे हैं , दोनो मिल कर एक हुए हैं , …
उस छोर यह लालिमा कैसी ? क्या दिनकर तुम आए हो ? या केवल यह मृगतृष्णा है, भ्रमर मधु भ्रम भरमाए हैं ? रुनझुन सी पायल बोली कुछ , …
तुम आओ – बन बादल बरसों – झूम के आओ – गरज के आओ – घनघोर घटा के आंचल में, बिजली की चमक से कौंध के आओ – तुम …
रोशनी से घिरा -मैं अन्धेरे में बैठा रहा! देखता मैं रहा लाखों तारे रहे जगमगा – झिलमिल करते रहे – चाहते थे -ना तम हो घना! उन की लौ …
मेरे अस्तित्व को बालू के ढेर सा मत समझो कि तुम रौंदते हुए चले जाओ – हवा के एक झोंके के साथ – तुम्हारे कदमों के निशान मिट जाएं …
शीश झुकाया बलिवेदी पर – है अब घबराना कैसा ? जीवन है नाम तपस्या का – तप से डर जाना कैसा ? पग उठ ही गए लक्ष्य के लिए …
दीप जलेंगे -तम छटेगा, मन पे छाए गहरे तम का क्या होगा ? पल -पल गहराए गा वह और भी ! लौ जलेगी -ज्योति मिलेगी, बरसों से जलते इस …
उस छोर यह लालिमा कैसी – क्या दिनकर तुम आए हो ? क्या केवल यह मृगतृष्णा है – भ्रमर मधु भ्रम भरमाए हैं? रुनझुन सी पायल बोली कुछ – …
ऐ गुल -गुलिस्तां तेरे दम से है, महकता है चमन – महक यह तेरे दम से है! अभी मुरझाया क्यों तू, सुबह की बेला है – साथी भी हैं …
अरसे से उठते बादल आकाश को थे घेरे, तड़प उठे हो पुलकित छुआ हवा ने क्यूं कर? डर है बरस ना जाएं – सूना गगन हो जाए, संजोए मोतियों …
नव कुसुमित ऐ प्रिय पुष्प सब लोग कहें मुझे ‘इक कांटा’, तेरी सुन्दर छवि का कलंक तीखा भद्दा बस इक कांटा! तेरी सुगन्ध से सुरभित हो हर एक हाथ …
भावनाओं को रूप देने हेतू तूलिका में रंग भरता हूं , अभिव्यक्ति की आडी़ तिरछी रेखाएं खींच , पीछे हट , आलोचक बन दृष्टि डालता हूं – तो क्या …