Category: आरज़ू लखनवी
हुस्ने-सीरत पर नज़र कर, हुस्ने-सूरत को न देख। आदमी है नाम का गर ख़ू नहीं इन्सान की॥ ध्यान आता है कि टूटा था, ग़लमफ़हमी में अहद। यादगार इक है …
हिम्मते-कोताह से दिल तंगेज़िन्दाँ बन गया। वर्ना था घर से सिवा इस घर का हर गोशा वसीअ़॥ छोड़ दे दो गज़ ज़मीं, है दफ़्न जिसमें इक गरीब। है तेरी …
हर दाने पै इक क़तरा, हर क़तरे पै इक दाना। इस हाथ में सुमरन है, उस हाथ में पैमाना॥ कुछ तंगियेज़िन्दाँ से दिलतंग नहीं वहशी। फिरता है निगाहों में, …
हमारा ज़िक्र जो ज़ालिम को अंजुमन में नही। जभी तो दर्द का पहलू किसी सुख़न में नहीं॥ शहीदे-नाज़ की महशर में दे गवाही कौन? कोई लहू का भी धब्बा …
साथ हर हिचकी के लब पर उनका नाम आया तो क्या? जो समझ ही में न आये वो पयाम आया तो क्या? मय से हूँ महरूप अब भी, जो …
सरूरे-शब का नहीं, सुबह का ख़ुमार हूँ मैं। निकल चुकी है जो गुलशन से वो बहार हूँ मैं॥ करम पै तेरे नज़र की तो ढै गया वह गरूर। बढ़ा …
सबब बग़ैर था हर जब्र क़ाबिले इल्ज़ाम। बहाना ढूंढ लिया, देके अख्तियार मुझे॥ किया है आग लगाने को बन्द दरवाज़ा। कि होंट सी के बनाया है राज़दार मुझे॥
हते न तुम अलग-थलग हम न गुज़रते आप से। चुपके से कहनेवाली बात कहनी पड़ी पुकार के॥ पूछी थी छेड़कर जो बात, कहने न दी वो बात भी। तुमने …
मुझे रहने को वो मिला है घर कि जो आफ़तों की है रहगुज़र। तुम्हें ख़ाकसारों की क्या खबर, कभी नीचे उतरे हो बाम से? जो तेरे अमल का चराग़ …
यह मेरी तौबा नतीजा है बुखले-साक़ी का। ज़रा-सी पी के कोई मुँह ख़राब क्या करता? यही थी ज़ीस्त की लज़्ज़त यही थी इश्क़ की शान। शिकायते-तपिशो-इज़्तराब क्या करता॥ मुझे …
मुझ ग़मज़दा के पास से सब रो के उठे हैं। हाँ आप इक ऐसे हैं कि ख़ूश होके उठे हैं॥ मुँह उठके तो सब धोते हैं ऐ दीदये-खूंबाज़। बिस्तर …
महमाँनवाज़, वादिये-गु़रबत की ख़ाक थी। लाशा किसी ग़रीब का उरियाँ नहीं रहा॥ आँसू बना जबीं का अरक़ ज़ब्ते-अश्क़ से। बदला भी ग़म ने भेस तो पिन्हाँ नहीं रहा॥ ज़बाँ …
भले दिन आये तो आज़ार बन गया आराम। क़फ़स के तिनके भी काम आ गए नशेमन के॥ मिटा के फिर तो बनाने पर अब नहीं काबू। वो सर झुकाए …
फिर ‘आरजू’ को दर से उठा, पहले यह बता। आखिर ग़रीब जाये कहाँ और कहाँ रहे॥ — — — था शौके़दीद ताब-ए-आदाबे-बज़्मेनाज़। यानी बचा-बचा के नज़र देखते रहे॥ अहले-क़फ़स …
पलक झपकी कि मंज़र खत्म था बर्क़े-तजल्ली का। ज़ता सी न्यामतेदीद, उसका भी यूँ रायगाँ जाना॥ समझ ले शमा से ऐ हमनशीं! आदाबे-ग़मख्वारी। ज़बाँ कटवानेवाले का है, मन्सब राज़दाँ …
नैरंगियाँ चमन की तिलिस्मे-फ़रेब हैं। उस जा भटक रहा हूँ जहाँ आशियाँ न था॥ पाबंदियों ने खोल दी आँखें तो समझे हम। आकर क़फ़स में बस गए थे आशियाँ …
नालाँ ख़ुद अपने दिल से हूँ दरबाँ को क्या कहूँ। जैसे बिठाया गया है, कोई पाँव तोड़ के॥ क्या जाने टपके आँख से किस वक़्त खू़नेदिल। आँसू गिरा रहा …
नादाँ की दोस्ती में जी का ज़रर न जाना। इक काम कर तो बैठे, और हाय कर न जाना॥ नादानियाँ हज़ारों, दानाई इक यही है। दुनिया को कुछ न …
न यह कहो “तेरी तक़दीर का हूँ मैं मालिक। बनो जो चाहो ख़ुदा के लिए, ख़ुदा न बनो॥ अगर है जुर्मे-मुहब्बत तो ख़ैर यूँ ही सही। मगर तुम्हीं कहीं …
दो घडी़ को दे-दे कोई अपनी आँखों की जो नींद। पाँव फैला दूँ गली में तेरी सोने के लिए॥ मिट भी सकती थी कहीं, बेरोये छाती की जलन। आग …
दिल का जिस शख़्स के पता पाया। उसको आफ़त में मुब्तला पाया॥ नफ़ा अपना हो कुच तो दो नुक़सान। मुझको दुनिया से खो के क्या पाया॥ बेकसी में भी …
तुम हो कि एक तर्ज़े-सितम पर नहीं क़रार। हम हैं कि पायेबन्द हरेक इम्तहाँ के हैं॥ हों सर्फ़ तीलियों में क़फ़स के तो ख़ौफ़ है। तिनके जो मेरे उजड़े …
जो मेरी सरगुज़िश्त सुनते हैं। सर को दो-दो पहर यह धुनते हैं॥ कै़द में माजरा-ए-तनहाई। आप कहते हैं, आप सुनते हैं॥ झूठे वादों का भी यकीन आ जाये। कुछ …
जो दर्द मिटने-मिटते भी मुझको मिटा गया। क्या उसका पूछना कि कहाँ था कहाँ न था॥ अब तक चारासाज़िये-चश्मेकरम है याद। फाहा वहाँ लगाते थे, चरका जहाँ न था॥
जो कोई हद हो मुअ़य्यन तो शौक़, शौक़ नहीं। वो कमयाब है जो कमयाब हो न सका॥ बुरी सरिश्त न बदली जगह बदलने से। चमन में आके भी काँटा …