Category: अनुपमा पाठक
हर वक़्त नहीं कर सकते हम आस की बातें, कभी कभी निराशा के सिवा कोई रंग ही नहीं बचता है ज़िन्दगी में! हमेशा नहीं हो सकती केवल चांदनी रातें, …
नदी भाव की बहती जाती थी दो किनारों के मध्य मौन के बीच गूंज जाता था शब्दों का अर्घ्य कई कई रूपों में बरसती थी प्रश्नों की बौछार उत्तर …
दूर हैं तुमसे? तो क्या… मन में गंगा की धार समेट लाये हैं! सारा प्यार… समस्त जीवनाधार समेट लाये हैं! हमारी किस्मत की तरह… ऐ! माटी… तू भी हर …
ईश्वर की लीला अपरम्पार है जो बह रही है कैसी अद्भुत धार है चेहरे पर मुस्कान लिए जीवन जय करते हैं हौसले की धूप खिली है और सरिता की …
जिस तरह प्रकृति में हवा बहती है वैसे ही कवि के अंतर में कविता बहनी चाहिए! प्रेरणा से ही सृजन संभव है जब न लिख सकें तो कह सकें …
यात्रा में हैं चल रहें हैं हम कभी खिली धूप कभी धरती नम ग़मगीन हुए कभी कभी यूँ ही हरसे क्या कहें ज़िन्दगी दूर बहुत ले आई है घर …
ये लिख दें… वो लिख दें मन में आता है सब लिख दें जब न रहेंगे हम रह जायेंगे अक्षर ही- जीवन की गंगा में बहती धारा पर रब …
चलो आज नहीं तो कल ही सही… तुम्हारी कविताओं से मिलेंगे, ढेर सारा स्नेह और थोड़े से आँसुओं से मन आँगन सींचेंगे ! तब समय कहाँ था उन पन्नों को …
आना सांसारिक प्रपंचों से बिलकुल निपट कर गंगा के इस पावन तट पर यहाँ की छटा है दिव्य सकल रश्मियाँ आँचल में आ गयी सिमट कर गंगा के इस …
कई बार सोचा कि बात हो कोई भली सी देने को सौगात हो पर हमेशा यही हुआ कभी अवसर नहीं कभी अवकाश नहीं कभी हम जल्दी में कभी समय …
हमेशा से अपनी रही होगी तभी तो इतनी जल्दी अपनी हो गयी, एक स्मृति… एक चमक… और फिर सारी वेदना खो गयी सुख दुःख की परिभाषाएं यहाँ भिन्न हैं, …
बनती रहे कविता शब्द थिरकते रहे अपनी लय में भाव नित परिमार्जित होता रहे अपने वेग से लेखक और पाठक…संवेदना के एक ही धरातल पर हों खड़े भेद ही …
ओ पेड़… क्या कहूँ ट्रेन की खिड़की से बाहर झाँक रही हूँ यात्रा में हूँ… अब तक के पड़ावों को आँक रही हूँ कितना कुछ है जो छूट रहा …
मान-अभिमान से परे रूठने-मनाने के सिलसिले-सा कुछ तो भावुक आकर्षण हो ! किनारे पर रेत से घर बनाता और अगले पल उसे तोड़-छोड़ आगे बढ़ता-सा भोला-भाला जीवन दर्शन हो! नमी …
इतराती हुई बह रही थी लहरों संग सागर में एक लहर सुनहरी धूप… मस्त पवन सबका आनंद लेती हुई ईठला रही थी हर पहर तभी देखा उसने किनारे से …
गुज़रती रही सदियाँ बीतते रहे पल आए कितने ही दलदल पर झेल सब कुछ अब तक अड़ी हूँ मैं ! अटल खड़ी हूँ मैं ! अट्टालिकाएँ करें अट्टहास गर्वित उनका हर …
भूलना हो अगर अपना दर्द तो अपनाओ औरों के गम को! राह में तुम भी हो राह में हम भी हैं आंसू चुनते किसी मोड़ पर मिलो कभी हमको!! …
प्यार… बूँद ओस की स्निग्ध किरण सूरज की चमके जिससे सारा संसार धरा पर बोया बीज है प्यार! प्यार… मस्ती पवन की गति जीवन की जो है सबका आधार …