Category: अंजु वर्मा
अमूर्त रूप बिखरा कण-कण तेरा दर्शन है धरती-गगन स्वामी! तुझे नमन (तांका… जापानी लघु-काव्य शैली) ५-७-५-७-७-
वो आँखें…….. कितना कुछ सुना गईं …. कितने तंज़ कितनी रंजिशें कितनी मिन्नतें कितनी मन्नतें एक अधूरा ख़्वाब एक पूरा इंतज़ार एक ढलती रात एक डूबता दिन …
तुम मौसम की सौगात लिए आते हो प्रणय आभास लिए सजती धरती दुल्हनिया-सी आते हो पुष्प-बारात लिए तुम राग हो या हो रंग कोई.. झरना हो या चुप-चाप …
कोहरा तो नहीं है मगर कुछ उस जैसा ही ठंडा और गीला है ये साँझ का धुंधलका… हौले-हौले गहराता वक्त की देगची में रंगता आसमानी दुपट्टा…. और …