Category: अंजना संधीर
हम से जाओ न बचाकर आँखें यूँ गिराओ न उठाकर आँखें ख़ामोशी दूर तलक फैली है बोलिए कुछ तो उठाकर आँखें अब हमें कोई तमन्ना ही नहीं चैन से …
स्वाभिमानिनी उसने कहा द्रौपदी शरीर से स्त्री लेकिन मन से पुरूष है इसीलिए पाँच-पाँच पुरुषों के साथ निष्ठापूर्ण निर्वाह किया। नरसंहार में भी विचलित नहीं हुई ख़ून से सींचकर …
ईसा! मैं मानव हूँ। तुम्हें इस तरह सूली से नीचे नहीं देख सकता! नहीं तो तुममें और मुझमें क्या अंतर? बच्चों ने आज कीलें निकाल कर तुम्हें मुक्त कर …
“तुम एक ग्लोबल पर्सन हो वापस जा कर बस गई हो पूर्वी देश भारत में फ़िर से लेकिन तुम्हारी विचार धारा अब भी यहाँ बसी है , ऐसे नहीं …
ये गयाना की साँवली-सलोनी , काले-लम्बे बालों वाली तीखे-तीखे नैन-नक्श, काली-काली आँखों वाली भरी-भरी , गदराई लड़कियाँ अपने पूर्वजों के घर, भारत वापस जाना चाहती हैं। इतने कष्टों के …
टैगोर की कविता दे कर उसने चिन्हित किया था शब्दों को कि वो उस रानी का माली बनना चाहता है सख़्त लड़की ने पढ़ा सोचा कि मेरे बाग का …
तुम अपनी बेटियों को इन्सान भी नहीं समझते क्यों बेच देते हो अमरीका के नाम पर? खरीददार अपने मुल्क में क्या कम हैं कि… बीच में सात समुंदर पार …
याद आते हैं गर्मियों में उड़ते हुए रेत के कण हवा चलते ही अचानक उड़कर, पड़ते थे आँख में और कस के बंद हो जाती थी अपने आप आँखें …
चलो फिर एक बार चलते हैं हक़ीक़त में खिलते हैं फूल जहाँ महकता है केसर जहाँ सरसों के फूल और लहलहाती हैं फसलें हँसते हैं रंग-बिरंगे फूल मंड़राती हैं …
कोलंबिया की सीढ़ियों से उतरते हुए शाम के नज़ारों ने रोक दिए कदम ठंडी हवा के झोंके ने सरसराहट पैदा की बदन में और आँखों को भा गई पक्के …
ख़याल उसका हर एक लम्हा मन में रहता है वो शमअ बनके मेरी अंजुमन में रहता है। कभी दिमाग में रहता है ख़्वाब की मानिंद कभी वो चाँद की …
ठंडे मौसम और ठडे खानों का यह देश धीर-धीर मानसिक और शारीरिक रूप से भी कर देता है ठंडा। कुछ भी छूता नहीं है तब कँपकँपाता नहीं है तन …
किताबे-शौक़ में क्या-क्या निशानियाँ रख दीं कहीं पे फूल, कहीं हमने तितलियाँ रख दीं। कभी मिलेंगी जो तनहाइयाँ तो पढ़ लेंगे छुपाके हमने कुछ ऐसी कहानियाँ रख दीं। यही …
पतझड़ के सूखे पत्तों पर चलते हुए जो संगीत सुनाई पड़ता है पत्तों की चरमराहट का ठीक वैसी ही धुनें सुनाई पड़ती हैं भारी भरकम कपड़ों से लदे शरीर …
काले-लम्बे घेरदार ,सीधे विभिन्न नमूनों के ओवर कोट की भीड़ में मैं भी शामिल हो गई हूँ। सुबह हो या शाम, दोपहर हो या रात बर्फ़ीली हड्डियों में घुसती …
वे ऊँचे-ऊँचे खूबसूरत “हाइवे” जिन पर चलती हैं कारें– तेज रफ़्तार से,कतारबद्ध, चलती कार में चाय पीते-पीते, टेलीफ़ोन करते, ‘टू -डॊर’ कारों में,रोमांस करते-करते, अमरीका धीरे-धीरे सांसों में उतरने …