Category: अंजना भट्ट
जख़्म अभी हरे हैं अम्मा मत कुरेदो इन्हें पक जाने दो लल्ली के बापू की कच्ची दारू जैसे पक जाया करती है भट्टी में। दाग़ अभी गहरे हैं बाबा …
दुल्हन का सिंगार और किसी की आँखों में बसने का विचार पूरा ही ना हो पाया… और इस दिलो-जान से प्यारे दिन की वीरानी मेरे रग रग में एक …
नीले समुन्दर का साया आँखों में भर के तेरी प्यारी आँखों के समुन्दर में डूबने को जी चाहता है मचलती लहरों की मस्ती दिल में भरके तेरी बाँहों के …
तुम्हारा सच, मेरा सच बस तुम जानो या मैं जानूं. तो फिर क्यों है इतनी उम्मीदें, बंधन और कड़वाहट? तुम्हारा अकेलापन या मेरा अकेलापन बस तुम जानो या मैं …
मेरे बच्चे, मेरे प्यारे, तू मेरे जिस्म पर उगा हुआ इक प्यारा सा नन्हा फूल… क्या है तेरा मुझसे रिश्ता? बस….एक लाल धागे का… टूटने पर भी उतना ही …
मेरी नज़रों ने वायदा किया है मेरी रूह से कि सनम तेरे सिवा कुछ ना देखेंगी तू ये जानता है ना कि मेरी रूह तू है? मैं शायद खुदा …
तिनका तिनका जोड़ा तुमने, अपना घर बनाया तुमने अपने तन के सुन्दर पौधे पर हम बच्चों को फूल सा सजाया तुमने हमारे सब दुःख उठाये और हमारी खुशियों में …
इस कदर छाई है दिल और दिमाग पर तेरी याद की आंधी इस तूफ़ान में उड़ कर भी तेरे पास क्यों नहीं आ पाती? इस कदर छाई है तन …
मैं? मैं हूँ एक प्यारी सी धरती कभी परिपूर्णता से तृप्त और कभी प्यासी आकाँक्षाओं में तपती. और तुम? तुम हो एक अंतहीन आसमान संभावनों से भरपूर और ऊंची …
मेरे दिल के राज, मेरी जिंदगी का ताना बाना पूरा तो मैने भी ना जाना तो तुम्हें कैसे बताऊँ कि कब हुआ मेरे सपनों के नगरी में तुम्हारा आना …
हर तरफ छाया है कोहरा…आँखें हैं कुछ मजबूर धुंधली सी बादल की एक चादर है कुछ नहीं आता नज़र दूर दूर… बस कुछ थोड़ी सी रोशनी और उसके पर …
वो आया मेरा मन कुछ भरमाया इससे पहले कि मै कुछ सोचती अपने मन को टटोलती या कुछ सपने बुनती अचानक पाया कि वो तो था सिर्फ एक साया. …
इच्छाओं का घर— कहाँ है? क्या है मेरा मन या मस्तिष्क या फिर मेरी सुप्त चेतना? इच्छाएं हैं भरपूर, जोरदार और कुछ मजबूर. पर किसने दी हैं ये इच्छाएं? …