Category: अनिता अग्रवाल
माटी मेरे खेत की लगे स्वर्ग से प्यारी सैकुदरत से मिली मुझेसौगात न्यारी सैफर्ज माँ का यहनिभा रही सैचीर कर छाती अपनीपेट हमारा भर रही सैचंदन भी शर्मा जाऐसी खुश्बू …
दो छोरों पर है जिंदगी वह जानती है अपनी जगह सब सुहागिने जानती है अपना पद अपना मान पर कितना कम जानती है जो धीरे-धीरे घट रहा है आसपास …
बहुत दिनों बाद मैं बाजार निकली तो लगा कि चीजें मेरे इंतजार में हैं इंतजार में है एक पुरी दुनिया खासर मेरे लिए खुलने को बेचैन यह क्या हुआ …
बसंत पंचमी आयी विवाह के लगन चढ़े आमों पर मंजर फूले मौसम पर छाई तरूणाई है सर्द रात है पीले बासंती मौसम में चारों और सन्नाटा बस गूँज है …
प्रसिद्धी आती है बताकर प्रेम आता है निःशब्द कभी आँखें भाषा बनती है कभी भाषा को आँखें चकित करती है अन्तस्तल के साथ
भाग्य छलता है आकांक्षाएँ छलती है आदमी की नींद उजाले को छलती है उजाला आदमी की नींद को नींद टूटने तक
दाना लेकर दीवार पर चढ़ती हुई चोटीं गिर जाती है और कुचली जाती है दाना पांच से चिपककर दूर जा गिरता है एक दूसरी चींटी आकर अहसास कराती है, …
जाने कब इतने बड़े-बड़े पंख निकल आए चिड़िया के उनके उड़ने की आहत न हुई और शहर में सन्नाटा पसर गया।
एक बार फिर वह सोच रही है अपनी जिंदगी के बारे में झुग्गी में बर्तन मांजने से सुबह की शुरूआत करती हुई और टूटी खाट की लटकती रस्स्यिों के …
रिक्शे वाला आता है रिक्शे में बैठकर धूप से पीछा छुड़ाती हूं बैठते हुए भी बैठने से कतराती हूं सोचती हूं रिक्शे वाले के बारे में उसे धूप से …