Category: अनामिका तिवारी
हर आँगन से उठती सिसकी सदियों से ख़ामोश है– आँगन से आँगन तक के सफ़र में। गुज़रती हुई सदियाँ तमाम उम्र के बेगार का अन्त सचमुच बहुत भयावह है। …
निश्चेष्ट पड़ा मेरा शरीर, सुषुप्त-सी आँखें देखती हैं रोशनी में हरकत करते दीवार पर कुछ कीड़े। कुछ स्पन्दन होता है शरीर में, होंठ हिलते हैं, कुछ शब्द बोलते हैं …
ख़ामोशियों में भी कुछ शोर रहता है और परछाइयों के पीछे कोई आहट दिल-ओ-दिमाग़ में दूर-दूर तक फैली है तन्हाई फिर भी, गुज़रे वक़्त का इन्तज़ार रहता है, कोशिशें …
आँखों में आँसू, होंठों पर दुआ, दरवाज़े पर इन्तज़ार करती मेरी माँ– देखती है स्कूल जाते नन्हें बच्चों में मुझे अब भी, जानती हूँ कि बहुत दूर हूँ उससे, …