Category: अमृता भारती
वह मेरा हर पड़ाव उठा लेता था और मैं- मानों सिर्फ़ यात्रा रह गई थी- एक संचरण । तब एक दिन ऐसा हुआ पैरों के नीचे से ज़मीन ही …
या तो वह बहुत पास था या बहुत दूर और ये दोनों वहाँ नहीं थे जहाँ मैं थी । मानों मैं एक अन्तराय थी एक ‘बीच’- एक परिचय उसके …
स्मरण- तब कोई न रहता पास बस वह उसका अहसास । मैं बाहर आ जाती अरण्य में अचानक उग आए चाँद की तरफ़ या अन्दर चली जाती जहाँ पत्थर …
एकान्त- जब वह होता जब वह न होता- कितना भरा हुआ होता एकान्त उससे उसके स्मरण से । रुक जाता हर क्षण सब कुछ एकटक हो जाता घर के …
मेरा अंधेरा खो गया था उसकी आँखों में और मैं भी- चलते-चलते उसके साथ क्षितिज की सुनहरी पगडंडी पर । श्वेत दृष्टि श्यामल हो उठी थी । मेरे होने, …
वह मेरी सर्वत्रता था मैं उसका एकान्त- इस तरह हम कहीं भी अन्यत्र नहीं थे । जब कोई क्षण टूटता वहाँ होता एक अनन्तकालीन बोध उसके समयान्तर होने का …
वह मेरा हर स्वप्न चुरा लेता था कि मैं गहरी नींद में सो सकूँ । जागने पर उसने एक-एक कर लौटाए थे मेरे स्वप्न ‘शिलातल’ की मुग्धता में ।
टोकरी बुनते हुए मैं नहीं जानती थी कि मैं इसमें फूल रखूँगी या स्वप्न या एक शिशु जो वह मुझे देगा समय की प्रार्थना के उत्तर में । टोकरी …
स्वतन्त्र हुए देश की तरह था वह- उसका माथा उसकी हँसी- मेरे देश की तरह दिव्य, अविभाज्य और सम्पूर्ण ।
मन रुक गया वहाँ जहाँ वह था । नित्य और निरन्तर गतिशील लय की अनन्तता में मन रुक गया वहाँ उसके अन्दर जहाँ घर था ।
मैं उसकी आँच में अपने को जलाती हूँ। जलने के लिए अपनी राख को बार-बार कोयला बनाती हूँ। वह पर्वत के शिखर पर बैठा है पर्वत एक नीला आकाश …
मैं उसके पास उसे रख रही हूँ उसकी ही बातें उससे कर रही हूँ। मैंने अपनी सब बाहें फैला ली हैं उन पर दियों की पातें जला ली हैं …
मैंने सारे जगत की स्याही घोंट ली है मैंने कालवृक्ष की टहनी तोड़ ली है उसका सद्यजात माथा नीचे झुकता है मेरी अनामिका का सर्पदंश सहता है
ऊँचे कदवाले लोगों के लिए उसके बाहर एक सूचना है : ‘यहाँ केवल मिट्टी ही आती है सब अपने जूते बाहर ही उतार दो अन्दर लेकर आना मना है।’
लोग उसे सोना-चांदी देते हैं : वह चुपचाप उनके भूबन्द कमरों में जाता है लोहे की दीवारों पर आकाश का छोटा-सा टुकड़ा चिपकाता है उसके पाँव डालने से सोने का …