Category: अमितु शर्मा
अपना मुल्क,अपना देश,अपनी ये जमीन है दुश्मनो के कानो मे तू ये जबान घोल दे मिटा गये जो वीर अपने ,बोलकर के इन्कलाब रख ले लाज उस लहू की,इन्कलाब …
फासले इतने बढे है दिलो मे आ गयी दरार भागदौड भरी जिंदगी मे टूट गये संयुक्त परिवार कित पाये संस्कार फूल अब दादी बाबा का उठ गया साया प्रेम …
वो दर्द जो मैंने महसूस किया उन दो प्यासी सी आँखो मे कलेजा सी चीरती चिंता झूठी मुस्कान थी बातो मे ना समझ सकी क्यू कहती है दुनिया बेटिया …
विश्व का अभिमान है तू प्राणियो का प्राण है तू क्यो बैठा है खौफ खाके देश का बलिदान है तू इन्द्रधनुष के सात रंग तेरी वीरता का परचम बन …
ए भारत के नौजवानो ! क्यो मुँह लटकाए बैठे हो लहू तुम्हारा पानी हुआ क्या जो मातम फैलाये बैठे हो वो दुश्मन भारत माता के आँचल को मैला कर …
क्यो बनाऊ मै किसी से अपना रिश्ता ? जल रही थी जब मेरी आँखो की मस्ती मझधार मे अटकी पडी थी मेरी कस्ती कौन था जो था मेरे संग …
नन्ही,नाजुक निर्मल,काँपती-सी ओस की बूँद । केले के पात बिखरते ये मोती हँसती नार । हल्का-सा स्पर्श धुमिल – सा इत्र नारी चरित्र । सूर्य किरण मिटता ये अस्तित्व …
हे नर हैवान भक्षक तू उद्दण्ड पूत खोके कामधेनु करता तू व्यापार । ये गाय अमृत कामायनी रोगनाशनी महकता दर उज्ज्वल होगा घर । ये दूध शरीर मल-मूत्र उच्छ्वास …
देख देखकर हाल देश का मेरी आँखे तो भर आती है घर की इज्जत कोई नारी कैसे खुद लुटाकर आ जाती है क्या गुनाह किया तुम्हे दहलीज कूदाकर अवसर …
ऐ जात सिमटी मानवता पिसता पिता विचलित मन धन लोलुप तन । ये शादी लालच बलवान पिता की आन दहेज दानव पराजित मानव । हो खत्म दायरे पराजित लालच …
भूखा इन्सान ! जीवन की बेबसी विदीर्ण मन !! रिश्तो की जांच ! टूटी सब उम्मीद बढते अपराध !! लिंग पूजन चढते फल,दूध कुचले पैर !! अन्न की आस …
ठिठुरता वो ! छत भी ना है कोई ताँकता आगे !! प्यासी-सी आँखे ! सिकुडता शरीर वस्त्र की आस!!
ये जिस्म के घाव तो भर जायेगे कैसे भरेंगे, वो आघात जो दे रहे वहशी दरिन्दे नोच डाले सारे जज्बात बाँधी थी कानून ने आखें ना ऊँच -नीच का …
दो प्रेमी दुश्मन जग आँखे टूटते दिल खोते उम्मीद ये बहकते कदम । ये दर्द बिखरे परिवार अर्थहीन तू जीवन की लालसा डूबता दिवाकर । ये मन समझा खोई …
हे देश कानून नाबालिग कुटिल बुद्धि वहशी दरिन्दे ना अपराध बोध। ये आखें समान अत्याचार एक-सा न्याय नही लिंग भेद ना अमीरी-गरीबी। ये उम्र महान न्याय गुम छूटते दोषी …
वो दुबले है,वो पतले है कुछ अस्थिहीन -सी शक्लें है वो नजर बीमार से आ रहे जैसे-तैसे चल पा रहे आखों मे नमी,उम्मीद नही रोटी की आस गयी डूब …
मान,प्रतिष्ठा शान भरा हो रिश्तो मे ना जहर भरा हो छू ले हम आसमा को अब के नया साल उम्मीद भरा हो विचित्र ,विलक्षण प्रेम अनुभूति विचलित ना हो …
हे प्राण निष्ठुर आगमन विचित्र माया अद्वितीय कष्ट कलेषित है काया। ये मोह खण्डित छूटी बाधा आत्मसात तू जग प्रज्वलित परमात्मा लीन तू। दो चक्षु कपाट बुरा भला निर्णायक …
वक्त, वक्त-बे-वक्त मेरा बदलता गया मै अनजानी राहो पे ही कदम रखता गया खूब रोका लोगों ने, ना बढ पाऊ मै कैद करके अरमान अपने पिंजरे मे रह जाऊ …
मैंने सुना जब तक लोगो का कहना मै बहुत ही अच्छा था सीधा था मै, भोला था दिल का बिल्कुल सच्चा था सहायता की जबतक दूजे की नजर झुका …
ना कोई कॉन्टैक्ट तार है ना भीड भाड की मार है आपकी बाधा हरने को इन्टरनेट तैयार है मन की हर आवाज को दूर दराज पहुचायेगा सोशल साइट की …
डर लगता है आज घर से निकलने मे कही कोई छिन ना ले इज्जत से जीने काहक दूजे पर भरोसा मै करू कैसे अब तो अपनो पर भी होता …
मुझे कदम कदम पर चौराहे मिलते है मंजिल की राहो पे दो राहे मिलते है डर लगने लगा है अब तो इन्सानों से मासूम चेहरों के पीछे खौफनाक साये …
गिरकर संभल जाऊ मै बस वो खयालात मेरे हो इश्क मे मौत भी मंजूर है मुझे पर जो दे मुझे मरने की सजा उन कुछ हाथो मे दो हाथ …
जिस राह पर रखे हमने कदम वो राह ही हमारी ना थी मंजिल को पाने का जुनून कम ना था बस वो मंजिल ही हमारी ना थी किस्मत को …