Category: आभा ‘आसिम’
अब रौशनी की तलाश में कहाँ फिरा जाए मरने की फुरसतें हैं तो अब जी लिया जाए तुमसे मुहब्बत कर के बहुत परेशाँ रहा हूँ मैं इसी बात पे …
मैंने खिड़कियों के शीशे इसलिये भी तोड़ दिए इक दीवार सी बन गयी थी नज़रों में इस पार से उस पार साफ़ नहीं दिखता था गर्द दिखती थी मुझे …
ना जाने क्या करते रहते हो क्यूँ इतना भी नहीं समझते हो अब कुछ नहीं हो सकता सजदे में चाहे सर लाख झुकाओ क़लमा पढ़ो कि दुआयें पाओ आईने …
आओ उम्र ढलने का मज़ा लें कि ज़िन्दगी हमारे लिए कोई फ़लसफ़ा है अब अब आलम कितना जुदा है ये जो सर के बालों की सफेदी है इसमें बरसों …
तुमसे कोई शिकवा नहीं है कोई तकलीफ गिला कुछ भी नहीं है जो चाहो रुक जाओ चाहो चले जाओ मुझे इल्म है तुम्हारी उलझनें है कुछ कुछ तुम्हारी हदें …
वक़्त की तरह आदमी चलता रहता है रुकता नहीं है कुछ मुकाम उसने बनाए हैं कुछ मुकाम उसकी खातिर बने हैं कुछ रास्ते उसने बनाए हैं कुछ रास्ते उसकी …
जीवन के गतिमान पथों पर तुम साहस बनकर संग चलते हो। मैं बनकर मेघ बरसता हूँ, तुम अम्बर बनकर संग रहते हो। किसने जानी हैं कर्मों की सीमा? किसने …
इक रोज़ लम्हे हाथों से फिसल गए जैसे कभी अपने न थे जैसे उनमें कोई जिया न था वो जो ख़्वाब पलकों में थे आंसुओं में धुल चुके थे …
यहीं नहीं हो तुम हर जगह क्यूँ हो बुझती हुई उम्मीदों में जलती हुई साँसों में हो नूर तुम्हारा मचल रहा है सहर सहर के दामन पर मैं ताक …
ओहदों को नापो मत तौलो भी मत पेशा चाहे जो कोई हो ज़रा ज़रा सा फ़र्क मिलेगा कुछ कुर्सियों का काग़ज़ी हिसाबों का कुछ दहर-ए-शौक़ की मेहरबानी है कुछ …
बहुत हुआ अब दिल में कोई बेरहम सा अरमान जगाओ खुली फिज़ाओं में ताको फिर किसी हवा से कोई तूफ़ान मांग लाओ कुछ ना सूझे ग़र तुम्हें जानम तुम …
फ़ासले रिश्तों के दरमियाँ बता कर नहीं आते कोई ज़ख्म गहरा कोई मजबूरी सी कोई ग़म कोई अफ़सोस इक रोज़ अपने साथ सब कुछ ले जाता है और ख़ामोश …