Category: आभा बोधिसत्त्व
तुम्हारे साथ वन-वन भटकूँगी कंद-मूल खाऊँगी सहूँगी वर्षा आतप सुख-दुख तुम्हारी कहाऊँगी पर सीता नहीं मैं धरती में नहीं समाऊँगी। तुम्हारे सब दुख सुख बाटूँगी अपना बटाऊँगी चलूँगी तेरे …
माँ! चांद देखकर ख़ुश होते हैं बच्चे पर मुझे यह चांद न सुहाया क्यों नहीं हुई ख़ुशी इसे देखकर कभी भी न आंगन के ताल में न नदियों के …
सच ईंधन की तरह जलता है, खदबदाता है अदहन की तरह कोई कीमियागर उसका धिकना कम नहीं कर पाता, उसे जलना पड़ता है हर हाल में हर कहीं वह …
बहनें होती हैं, अनबुझ पहेली-सी जिन्हें समझना या सुलझाना इतना आसान नही होता जितना लटों की तरह उलझी हुई दुनिया को , इन्हें समझते और सुलझाते …में विदा करने …
आज महिला दिवस पर मन में बहुत कुछ चल रहा है, क्या लिखूँ क्या न लिखूँ के बीच समय बीत रहा है, इसी बीतने में हर दिवस हर त्यॊहार …
यहाँ नदी किनारे मेरा घर है घर की परछाई बनती है नदी में । रोज़ जाती हूँ सुबह-शाम नहाने गंगा में गंगा से मांगती हूँ मनौती एक बार देख …
चलो हम दीया बन जाते हैं और तुम बाती … हमें सात फेरों या कि कुबूल है से क्या लेना-देना हमें तो बनाए रखना है अपने दिया-बाती के सम्बन्ध …
तुम्हारी कविता से जानती हूँ तुम्हारे बारे में तुम सोचते क्या हो , कैसा बदलाव चाहते हो किस बात से होते हो आहत; किस बात से खुश तुम्हारा कोई …
स्त्रियाँ घरों में रह कर बदल रही हैं पदवियाँ पीढी दर पीढी स्त्रियाँ बना रही हैं उस्ताद फिर गुरु, अपने ही दो-चार बुझे-अनबुझे शव्दों से , दे रही हैं …
हेनरी फ़ोर्ट ने कहा- बन्धन मनुष्यता का कलंक है, दादी ने कहा- जो सह गया समझो लह गया, बुआ ने किस्से सुनाएँ मर्यादा पुरुषोत्तम राम और सीता के, तो …
( उन तमाम भाइयों के लिए जो जीवन में असफल रहे) भाई तुम ईश्वर नहीं भाई हो भाई तुम पानी नहीं भाई हो बल्कि कह सकती हूँ साफ-साफ कि …