Category: जहीर कुरैशी
सपने अनेक थे तो मिले स्वप्न-फल अनेक, राजा अनेक, वैसे ही उनके महल अनेक। यूँ तो समय-समुद्र में पल यानी एक बूंद, दिन, माह, साल रचते रहे मिलके पल …
हमारे भय पे पाबंदी लगाते हैं अंधेरे में भी जुगनू मुस्कुराते हैं बहुत कम लोग कर पाते हैं ये साहस चतुर चेहरों को आईना दिखाते हैं जो उड़ना चाहते …
सपने अनेक थे तो मिले स्वप्न-फल अनेक, राजा अनेक, वैसे ही उनके महल अनेक। यूँ तो समय-समुद्र में पल यानी एक बूंद, दिन, माह, साल रचते रहे मिलके पल …
सब की आँखों में नीर छोड़ गए जाने वाले शरीर छोड़ गए राह भी याद रख नहीं पाई क्या कहाँ राहगीर छोड़ गए लग रहे हैं सही निशाने पर …
वो हिम्मत करके पहले अपने अन्दर से निकलते हैं बहुत कम लोग , घर को फूँक कर घर से निकलते हैं अधिकतर प्रश्न पहले, बाद में मिलते रहे उत्तर …
वो जिन लोगों को सपने बेचते हैं फिर उनको ही करिश्मे बेचते हैं हों हेड और टेल जिनके एक जैसे ठगों को हम वो सिक्के बेचते हैं खुले बाज़ार …
वे शायरों की कलम बेज़ुबान कर देंगे जो मुँह से बोलेगा उसका ‘निदान’ कर देंगे वे आस्था के सवालों को यूं उठायेंगे खुदा के नाम तुम्हारा मकान कर …
लोग जो गुनगुनाते रहे मन ही मन सुर में गाते रहे । अनवरत मीठी मुस्कान से फूल सबको लुभाते रहे । ख़ुद भी उड़ते हैं आकाश में जो पतंगे …
मुस्कुराना भी एक चुम्बक है, मुस्कुराओ, अगर तुम्हें शक है! उसको छू कर कभी नहीं देखा, उससे सम्बन्ध बोलने तक है। डाक्टर की सलाह से लेना, ये दवा भी …
फूल के बाद फलना ज़रूरी लगा, भूमिकाएँ बदलना ज़रूरी लगा। दर्द ढलता रहा आँसुओं में मगर दर्द शब्दों में ढलना ज़रूरी लगा। ‘कूपमंडूक’ छवि को नमस्कार कर, घर से …
दिन-ब-दिन घाव गहरे हुए पीर के पल सुनहरे हुए स्वार्थवश लोग अंधे बने स्वार्थवश लोग बहरे हुए एक से काम चलता न था उनके चेहरों पे चेहरे हुए तन …
दबंगों की अनैतिकता अलग है, उन्हें अन्याय की सुविधा, अलग है। डराते ही नहीं अपराध उनको, महल का गुप्त दरवाजा अलग है। जिसे तुम व्यक्त कर पाए न अब …
चित्रलिखित मुस्कान सजी है चेहरों पर, मुस्कानों की ?सेल? लगी है चेहरों पर । शहरों में, चेहरों पर भाव नहीं मिलते, भाव-हीनता ही पसरी है चेहरों पर । लोग दूसरों …
घर छिन गए तो सड़कों पे बेघर बदल गए आँसू, नयन— कुटी से निकल कर बदल गए अब तो स्वयं—वधू के चयन का रिवाज़ है कलयुग शुरू हुआ तो …
गगन तक मार करना आ गया है, समय पर वार करना आ गया है । उन्हें……कविता में बौनी वेदना को, कुतुब-मीनार करना आ गया है ! धुएँ की स्याह चादर …
उपालंभ में करता है–ग़ज़ल उपालंभ में करता है या आदर से बातें करता है, हर मनुष्य अपनी भाषा में ईश्वर से बातें करता है. गागर ने महसूस किया तब …
उपन्यासों की बानी हो रही है बहुत लम्बी कहानी हो रही है बदल जाए न उसका स्वर अचानक वो जिसकी मेज़बानी हो रही है बहुत वाचाल लोगों के शहर …
उन्हें देखा गया खिलते कमल तक, कोई झाँका नहीं झीलों के तल तक। तो परसों, फिर न उसकी राह तकना, जो भूला आज का, लौटा न कल तक। न …
आँखों की कोर का बडा हिस्सा तरल मिला, रोने के बाद भी, मेरी आँखों में जल मिला। उपयोग के लिए उन्हें झुग्गी भी चाहिए, झुग्गी के आसपास ही उनका …
अँधेरे की सुरंगों से निकल कर गए सब रोशनी की ओर चलकर खड़े थे व्यस्त अपनी बतकही में तो खींचा ध्यान बच्चे ने मचलकर जिन्हें जनता ने खारिज कर …