Category: ज़फ़र गोरखपुरी
हमेशा है वस्ल-ए-जुदाई का धन्धा बुतों की है उल्फ़त ख़ुदाई का धन्धा अगर बैठें रिन्दों की सोहबत में ज़ाहिद तो दें छोड़ सब पारसाई का धन्धा जो होना है आख़िर वो …
मौसम को इशारों से बुला क्यूँ नहीं लेते रूठा है अगर वो तो मना क्यूँ नहीं लेते दीवाना तुम्हारा कोई ग़ैर नहीं मचला भी तो सीने से लगा क्यूँ …
मैं ऐसा ख़ूबसूरत रंग हूँ दीवार का अपनी अगर निकला तो घरवालों की नादानी से निकलूंगा मैं ज़फ़र ता-ज़िंदगी बिकता रहा परदेस में अपनी घरवाली को एक कंगन दिलाने …
मेरे बाद किधर जाएगी तन्हाई मैं जो मरा तो मर जाएगी तन्हाई मैं जब रो रो के दरिया बन जाऊँगा उस दिन पार उतर जाएगी तन्हाई तन्हाई को घर …
मेरी इक छोटी सी कोशिश तुझको पाने के लिए बन गई है मसअला सारे ज़माने के लिए रेत मेरी उम्र, मैं बच्चा, निराले मेरे खेल मैंने दीवारें उठाई हैं …
मिले किसी से नज़र तो समझो ग़ज़ल हुई । रहे अपनी ख़बर तो समझो ग़ज़ल हुई ।। मिला के नज़रों को वो हया से फिर, झुका ले कोई नज़र …
शरीके–हयात किताबुन्निसा के नाम मुझे इक बोझ की सूरत उठाकर शाम कांधे पर जब अपने घर पटक देती है लाकर तेरे होठों की ज़िंदा मुस्कराहट उठाती है मुझे कहती है …
मयक़दा सबका है सब हैं प्यासे यहाँ मय बराबर बटे चारसू दोस्तो चंद लोगों की ख़ातिर जो मख़सूस हों तोड़ दो ऐसे जामो-सुबू दोस्तो!
मजबूरी के मौसम में भी जीना पड़ता है थोड़ा सा समझौता जानम करना पड़ता है कभी कभी कुछ इस हद तक बढ़ जाती है लाचारी लगता है ये जीवन …
बदन कजला गया तो दिल की ताबानी से निकलूंगा मै सूरज बनके इक दिन अपनी पेशानी से निकलूंगा मुझे आंखों में तुम जां के सफ़र की मत इजाज़त दो …
धूप क्या है और साया क्या है अब मालूम हुआ ये सब खेल तमाशा क्या है अब मालूम हुआ हँसते फूल का चेहरा देखूँ और भर आई आँख अपने …
देखें क़रीब से भी तो अच्छा दिखाई दे इक आदमी तो शहर में ऐसा दिखाई दे अब भीक मांगने के तरीक़े बदल गए लाज़िम नहीं कि हाथ में कासा दिखाई …
दिन को भी इतना अन्धेरा है मेरे कमरे में साया आते हुए डरता है मेरे कमरे में ग़म थका हारा मुसाफ़िर है चला जाएगा कुछ दिनों के लिए ठहरा …
जिस्म छूती है जब आ आ के पवन बारिश में और बढ़ जाती है कुछ दिल की जलन बारिश में मेरे अतराफ़ छ्लक पड़ती हैं मीठी झीलें जब नहाता …
ज़मीं, फिर दर्द का ये सायबां कोई नहीं देगा तुझे ऐसा कुशादा आसमां कोई नहीं देगा अभी ज़िंदा हैं, हम पर ख़त्म कर ले इम्तिहाँ सारे हमारे बाद कोई …
जब मेरी याद सताए तो मुझे ख़त लिखना । तुम को जब नींद न आए तो मुझे ख़त लिखना ।। नीले पेड़ों की घनी छाँव में हँसता सावन, प्यासी …
क्या उम्मीद करे हम उन से जिनको वफ़ा मालूम नहीं ग़म देना मालूम है लेकिन ग़म की दवा मालूम नहीं जिन की गली में उम्र गँवा दी जीवन भर …
कौन याद आया ये महकारें कहाँ से आ गईं दश्त में ख़ुशबू की बौछारें कहाँ से आ गईं कैसी शब है एक इक करवट पे कट जाता है जिस्म …
इरादा हो अटल तो मोजज़ा ऐसा भी होता है दिए को ज़िंदा रखती है हव़ा, ऐसा भी होता है उदासी गीत गाती है मज़े लेती है वीरानी हमारे घर में …