Category: युगल पाठक ‘विहंग’
जिस्म को पेशा बना पेट की आग बुझाती है है वो खुद तड़प कर तुम्हें कुछ क्षण सुख के दे जाती है वो चंद कागज़ के टुकड़ों पर ईमान …
मैं अपने मन की आरज़ू पर ही लिखता हूँ अपने व दूसरों के सुखों – दुखों को मात्र एक माला में पिरोता हूँ तुम क्या जानो यारों इस जद्दोज़हद में …
यादें…… जीवन का हर एक पल, हर जीवित क्षण एक सपना-सा लगता है जीवन डगर में जो कुछ खोया है जाने क्यों सब अपना-सा लगता है मरूस्थल की वह …
मेरी यह कविता आज के सामाजिक परिवेश मेँ बच्चोँ पर पढ़ाई व दिनचर्या से उत्पन्न दबाव के कारण उनके दिनोदिन खत्म होते बचपन पर आधारित है।मेरी यह कविता इस …
यह कविता मानव जीवन में घटित होने वाली घटनाओं के भय पर आधारित है। मैंने अपने स्वप्न को साकार होते देखा है, निराकार ब्रह्म को भी आकार होते देखा …
आज़ादी की दास्ताँ……. क्या यही सोचकर वीरो तुमने हिँद वतन आज़ाद किया कि अपने ही लूटेँ हिँद धरा को अपने ही लूटेँ हिँद वतन अपनोँ के ही कदमोँ तले …