Category: यशवीर सिंह चंदेल ‘राही
यह स्वार्थ सिन्धु का गौरव अति पारावार प्रबल है। सर्वश्व समाहित इसमें, आतप मार्तंड सबल है॥ मृदुभाषा का मुख मंडल, है अंहकार की दारा। सिंदूर -मोह-मद-चूनर, भुजपाश क्रोध की …
जीवन सरिता का पानी , लहरों की आँख मिचौनी । मेघों का मतवालापन , बरखा की मौन कहानी॥ गल बाहीं डाले कलियाँ, है लता कुंज में हँसती। चलना,जलना , …
क्या मिलन विरह में अन्तर, सम्भव जान पड़ते हैं। निद्रा संगिनी होती तो, सपने जगते रहते हैं॥ जीवन का सस्वर होना, विधि का वरदान नही है। आरोह पतन की …
मानव का इतिहास यही, मानस की इतनी गाथा। आँखें खुलते रो लेना , फिर झँपने की अभिलाषा ॥ जग का क्रम आना-जाना, उत्थान पतन की सीमा । दुःख-वारिद , …
सागर को संयम दे दो, या पूरी कर दो आशा। भाषा को आँखें दे दो, या आंखों को दे दो भाषा॥ तम तोम बहुत गहरा है, उसमें कोमलता भर …
तोड़ना नही सम्भव है, विधि के विधान की कारा । अपराजेय शक्ति है कलि की, पाकर अवलंब तुम्हारा ॥ श्रृंखला कठिन नियमो की, विधना भी मुक्त नही है । …
दीन दुखियो के डेरों में मिल जायेंगे। प्रेम के सात फेरो मिल जायेंगे। मंदिरों की शिलाओं में खोजो नहीं- राम शवरी के बेरों में मिल जायेंगे॥ वो धनुष की …
द्वयता से क्षिति का रज कण , अभिशप्त ग्रहण दिनकर सा। कोरे षृष्टों पर कालिख , ज्यों अंकित कलंक हिमकर सा॥सम्पूर्ण शून्य को विषमय, करता है अहम् मनुज का। …