सूनापन विवेक गुप्ता 27/10/2016 विवेक गुप्ता 8 Comments कौन सी यह नयी भावना, मन में पाँव पसारे रे |अनकही सी अनछुई सी, जग क्या इसको पुकारे रे |मन का कोई कांच टूटा, आँखें सुनामी लाये रे |कैसा … [Continue Reading...]
वियोगी मन विवेक गुप्ता 27/10/2016 विवेक गुप्ता 22 Comments जब से तुमने मुख मोड़ लिया है,नेह से बंधन तोड़ लिया है |बिखर गए हैं मोती माला के,शब्द खो गए मेरी कविता के |रसिक ह्रदय का स्वाद छिन गया,छंद … [Continue Reading...]