Category: विश्वम्भर पाण्डेय ‘व्यग्र’
आया दीपावली त्यौहार…******************* — विश्वम्भर पाण्डेय ‘व्यग्र’आया दीपावली त्यौहारलाया खुश़ियां बेशुमारघर-आँगन की साफ-सफाईदीवारों की हुई पुताईगली-मौहल्ले दमके सारे,सजे हाट-बाजार…आया दीपावली त्यौहार |रसगुल्लों के हैं हँसगुल्लेजलेबी-नवेली मारे ठल्लेसोनपपड़ी,सोनपरी सी,कर रही …
माहिया छंद (कविता) ******************** ऋतु पावस की आई पिया मिलन की चाह मन लेता अँगड़ाई ****************** घन घोर घटा छाई मेघ बिच चपला चमके रही विरहन घबराई ****************** सावन …
बाड़ खाय जब खेत को , मांझी डुबाय नाव । उल्टी- गंगा बह रही , ये कैसा बदलाव ।। राजनीति दोषी नहीं ,दोषी खुद इंसान । करता गलती …
जाति-धर्म को भूल कर, करना है मतदान जागो-जनमत का करे,हर कोई सम्मान हर कोई सम्मान , वोट के महत्व को जानो करो देश निर्माण , हकीकत को पहचानो कहे …
> wrote: लाडलों का कहां गया बचपन वो रूठना और मचलना, बात-बात अनवन छत पर सोना छूटा,छूटा आसमान का ज्ञान, सप्त ॠषि व ध्रुव तारे की,कठिन हुई पहचान, मिट्टी …
वो नदी सी रात -दिन,अनवरत बहती रही , ,पुरूष अडिग पहाड़ सा,चल न पाया एक डग । मोमबत्ती सी जली वो,प्रकाशित घर होता रहा, पुरुष जब भी जला, …
बिना टिकिट बागी हुये, कितने आज दबंग बदल गये कुछ इसतरह , बदले गिरगिट रंग बदले गिरगिट रंग ,ताल चुनाव की ठोकी समीकरण किए फैल, राह कितनों की रोकी …
धीरे -धीरे शीत अब ,जाने को बेताब सूरज ने नरमी तजी,तीखे हुये जनाब तीखे हुये जनाब ,छांव अब लगती प्यारी जो थी हवा कटार , लगे अब न्यारी-न्यारी कहे …
बिना टिकिट बागी हुये, कितने आज दबंग बदल गये कुछ इस तरह, बदले गिरगिट रंग बदले गिरगिट रंग, ताल चुनाव की ठोकी समीकरण किए फेल ,राह कितनों की रोकी …