Category: विनोद पाण्डेय
आ गई है ग्रीष्म ऋतु तपने लगी फिर से है धरती और सन्नाटें में डूबी, गर्मियों की ये दुपहरी आग धरती पर उबलने,को हुआ तैयार सूरज गर्म मौसम ने …
इक लहर सी हृदय में उठी है प्रिये क्या कहूँ किस कदर बेखुदी है प्रिये नैन बेचैन है,हसरतें हैं जवाँ हर दबी भावना अब जगी है प्रिये प्रेम के …
कच्चे घड़े है बच्चे,उनकी खता ही क्या है है संस्कार क्या ये माँ बाप को पता है सुनसान हो डगर तो चलना संभल संभल के इंसान आज कल कुछ …
वो हैं गुलाब जैसे,हर एक इक अदा गुलाबी उनसे मिली नजर तो चेहरा हुआ गुलाबी गुझिया खिलायी उसने,हाथों के अपने लाकर मन मस्त हो गया और,मौसम हुआ गुलाबी लेकिन …
दर्द ही जब दवा बन गई मुस्कराहट अदा बन गई राह इतनी भी आसाँ न थी जिद मगर हौसला बन गई सीख माँ ने जो दी थी मुझे उम्र …
जो अंधों में काने निकले वो ही राह दिखाने निकले उजली टोपी सर पर रख के सच का गला दबाने निकले चेहरे रोज बदलने वाले दर्पण को झुठलाने निकले …