Category: विकाश प्रताप सिंह
दिल की गहराइयो में खुद की सच्चाइयाँ नज़र आती है उनके दिल का खुदा जाने , हमें सिर्फ गहराइयाँ नज़र आती है ढूंढते रहते है भूली बिसरी यादें , …
वो जो बेटी व्याही है बड़े घर में वहां अब से कोई आवाज़ नहीं आती बिना दहेज़ के बेटी भेजी है जाने क्यों नींद रात भर क्यों नहीं आती
इसी मुकाम पे समझा तमाम रिश्तों को लगा रहा हूं जब अपने मकान की कीमत बड़ा ग़ुरूर, बड़ी हैसियत, बड़ी बातें अकाल हो तो समझते हैं धान की कीमत …
एक आम आदमी सुबह सुबह टीबी का रिमोट ओन करता है और समाचार सुनाता है की ”” कुछ चीजे सरकार ने सस्ती कर दी है करो में रियायतें कर …
तुम्हारे दुआओ में असर तुम्हारी बातो में असर तुम्हारी अदाओ में असर तुम्हारी खताओं में भी असर ये असर तो हमारा है जो आप इतने असरदार हो गए
आते जाते चेहरों को हम अब पढ़ जाते है बात बात पे न जाने वो क्यों अब लड़ जाते है ये आशिकी आसान नहीं , जरा ऐतिहात बरतना खुली …
अजब हाल है इस रिवायती दौर में हाल अपना बताने को कोई बेखबर ढूंढता है इस दौर जो झुके है किसी के आगे वो नासमझ अपना सर ढूंढता है …
ढूंढते फिरते है अपनी अपनी मंज़िले , निगहबानो के बीच वक्त की धुंध के पार कही और चले ये जो फूलों से भरा सेहर था हमारा वो मिटटी में …
पूछो के क्या नहीं , वो सब जानता है वो किरदार तो नहीं है , पर कलाकारी जानता है वो वफ़ा से महरूम है , पर गद्दारी जानता है …
1 . ज़िन्दगी बीती सारी पर न कोई मददगार पाया ढूंढा हमने प्यार पर सिर्फ बाजार पाया 2 . हमने बसाया था उन्हें आँखों में आसमान की तरह छोड़ …
बड़े ही इज़्ज़त से बुलाते वो आजकल इस झूठ के पीछे कुछ सच्चाइयाँ होंगी जरूर हम भी गए जरा सा इतिहत बरत कर उनके पास हम ये भी जानते …
न जाने कितने बेचारे इस मैखाने में है कितनी कशिश इस पैमाने में है लब छूते पैमानों की हवस उतरती है जब सीने में ऐसा लगता है किसी दवाखाने …
मानवता को आधार बना कर नयन में स्वपनों को सजा कर करते हम गुणगान ये विश्व गुरु हिंदुस्तान है ये नयन सेज पर हो क्षितिज हमेशा पटेल , भगत …