Category: उत्पल बैनर्जी
जब नींद के निचाट अँधेरे में सेंध लगा रहे थे सपने और बच्चों की हँसी से गुदगुदा उठी थी मन की देह, हम जाने किन षड़यंत्रों की ओट में …
हममें बहुत कुछ एक-सा और अलग था … वन्यपथ पर ठिठक कर अचानक तुम कह सकती थीं यह गन्ध वनचम्पा की है और वह दूधमोगरा की, ऐसा कहते तुम्हारी …
अभी आता हूँ — कहकर हम निकल पड़ते हैं घर से हालाँकि अपने लौटने के बारे में किसी को ठीक-ठीक पता नहीं होता लेकिन लौट सकेंगे की उम्मीद लिए …
लड़की को बोलने दो लड़की की भाषा में, सुदूर नीलाकाश में खोलने दो उसे मन की खिड़कियाँ, उस पार शिरीष की डाल पर बैठा है भोर का पहला पक्षी …
वहाँ डबडबाती आँखों में उम्मीद का बियाबान था किसी विलुप्त होते धीरज की तरह थरथरा रही थी कातर तरलता दूर तक अव्यक्त पीड़ा का संसार बदलते दृश्य-सा फैलता जा …
जब निराशा का अंधेरा घिरने लगेगा और उग आएंगे दुखों के अभेद्य बीहड़ ऐसे में जब तुम्हारी करुणा का बादल ढँक लेना चाहेगा मुझे शीतल आँचल की तरह मैं …
लाल हरे पीले टापुओं की तरह होते थे बर्फ़ के लड्डू बचपन के उदास मौसम में खिलते पलाश की तरह। सुर्ख़ रंगों के इस पार से बहुत रंगीन दिखती …
हे ईश्वर! हम शुद्ध मन और पवित्र आत्मा से प्रार्थना करते हैं तू हमें हुनर दे कि हम अपने प्रभुओं को प्रसन्न रख सकें और हमें उनकी करुणा का …
मैं भेजूंगा उसकी ओर प्रार्थना की तरह शुभेच्छाएँ, किसी प्राचीन स्मृति की प्राचीर से पुकारूंगा उसे जिसकी हमें अब कोई ख़बर नहीं, अपनी अखण्ड पीड़ा से चुनकर कुछ शब्द …
अपनी ही आग में झुलसती है कविता अपने ही आँसुओं में डूबते हैं शब्द। जिन दोस्तों ने साथ जीने-मरने की क़समें खाई थीं एक दिन वे ही हो जाते …
हमने ऐसा ही चाहा था कि हम जिएँगे अपनी तरह से और कभी नहीं कहेंगे — मज़बूरी थी, हम रहेंगे गौरैयों की तरह अलमस्त अपने छोटे-से घर को कभी …
मैं अपनी कविता में लिखता हूँ ‘घर’ और मुझे अपना घर याद ही नहीं आता याद नहीं आती उसकी मेहराबें आले और झरोखे क्या यह बे-दरो-दीवार का घर है! …
एक दिन अचानक हम चले जाएँगे तुम्हारी इच्छा और घृणा से भी दूर किसी अनजाने देश में और शायद तुम जानना भी न चाहो हमारी विकलता और अनुपस्थिति के …
कालचक्र में फँसी पृथ्वी तब भी रहेगी वैसी की वैसी अपने ध्रुवों और अक्षांशों पर वैसी ही अवसन्न और आक्रान्त! धूसर गलियाँ अहिंसा सिखाते हत्यारे असीम कमीनेपन के साथ …
अलमारी में बंद किताबें प्रतीक्षा करती हैं पढ़े जाने की सुरों में ढलने की प्रतीक्षा करते हैं गीत प्रतीक्षा करते हैं — सुने जाने की अपने असंख्य क़िस्सों का …