Category: तोष
सरकै अँग अँग अबै गति सी मिसि की रिसकी सिसकी भरती । करि हूँ हूँ हहा हमसो हरिसो कै कका की सोँ मो करको धरती । मुख नाक सिकोरि …
बिछुरे मग जाती सँघाती मिली चख चाति कै धार सवाती मिली । रसना जड़ की सरसाती मिली चित सूम को सोन की थाती मिली । जड़ बूड़ति नाव सोहाती …
गोपिन के अँसुवान के नीर पनारे बहे बहिकै भए नारे । नारे भए ते भई नदियाँ नदियाँ नद ह्वै गए काटि कगारे । बेगि चलौ तो चलो ब्रज को …
आओ जिन आइबे को गहो जिन गहिबे को , गहे रहिबे को छोड़ि छोड़िकै सुनावती । खीझिहू को रीझि झिझिकारिबो मया है अरु , रोसै रस ज्योँ ज्योँ भृकुटीन …
लाज बिलोकन देत नहीँ रतिराज बिलोकन ही की दई मति । लाज कहै मिलिये न कहूँ रतिराज कहै हित सोँ मिलिये यति । लाजहु की रतिराजहु की कहै तोष …
कैसे कहौँ कोक वे तो शोक ही मे रहेँ निशि , ये तो शशिमुखी सदा आनँद सोँ हेरे हैँ । कैसे कहौँ करि कुम्भ वे तो कारे करकस , …
तेरियै चित्र के काज हमै करि तोष सबै ब्रजराज दये हैँ । पत्र बिचित्र बिचित्र बनाइ सिखाइ सबै बहु मोद मये हैँ । रँग बनावत अँग लगे सर ल्यावत …