Category: ठाकुर
हिलि मिलि लीजिये प्रवीनन ते आठो याम कीजिये अराम जासोँ जिय को अराम है । दीजिये दरस जाको देखिबे की हौँस होय कीजिये न काम जासे नाम बदनाम है …
हम एक कुराह चलीं तौ चलीं, हटकौ इन्हैं ए ना कुराह चलैं। इहि तौ बलि आपुनौ सूझती हैं, प्रन पालिए सोई, जो पालैं पलै॥ कवि ‘ठाकुर प्रीति करी है …
सेवक सिपाही सदा उन रजपूतन के दान युद्ध वीरता मेँ नेकु जे न मुरके । जस के करैया हैँ मही के महिपालन के हिय के विशुद्ध हैँ सनेही साँचे …
सुरझी नहिं केतो उपाइ कियौ, उरझी हुती घूंघट खोलन पै। अधरान पै नेक खगी ही हुती, अटकी हुती माधुरी बोलन पै॥ कवि ‘ठाकुर लोचन नासिका पै, मंडराइ रही हुती …
वा निरमोहिनि रूप की रासि न ऊपर के मन आनति ह्वै है । बारहि बार बिलोकि घरी घरी सूरति तो पहिचानति ह्वै है । ठाकुर या मन की परतीति …
वह कंज सो कोमल, अंग गुपाल को, सोऊ सबै पुनि जानति हौ। बलि नेक रुखाई धरे कुम्हलात, इतौऊ नहीं पहिचानति हौ॥ कवि ‘ठाकुर या कर जोरि कह्यो, इतने पै …
लगी अंतर मैं, करै बाहिर को, बिन जाहिर, कोऊ ना मानतु है। दुख औ सुख, हानि औ लाभ सबै, घर की कोऊ बाहर भानतु है॥ कवि ‘ठाकुर आपनी चातुरी …
रोज न आइये जो मन मोहन, तौ यह नेक मतौ सुन लीजिये। प्रान हमारे तुम्हारे अधीन, तुम्हैं बिन देखे सु कैसे कै जीजिये॥ ‘ठाकुर लालन प्यारे सुनौ, बिनती इतनी …
रूप अनूप दई बिधि तोहि तो मान किये न सयानि कहावै । और सुनो यह रूप जवाहिर भाग बड़े विरलो कोई पावै । ठाकुर सूम के जात न कोऊ …
यह प्रेम कथा कहिये किहि सोँ जो कहै तो कहा कोऊ मानत है । सब ऊपरी धीर धरायो चहै तन रोग नहीँ पहिचानत है । कहि ठाकुर जाहि लगी …
मेवा घनी बई काबुल में, बिंदराबन आनि करील लगाए राधिका सी सुरबाम बिहाइ कै, कूबरी संग सनेह रचाए। मेवा तजी दुरजोधन की, बिदुराइन के घर छोकल खाए। ‘ठाकुर ठाकुर …
बैर प्रीति करिबे की मन में न राखै सक॥ राजा राव देखि कै न छाती धक धाकरी। आपनी उमँग की निबाहिबे की चाह जिन्हें॥ एक सों दिखात तिन्हें बाघ …
बरुनीन मैं नैन झुकैं उझकैं, मनौ खंजन मीन के जाले परे। दिन औधि के कैसे गनौं सजनी, अंगुरीनि के पोरन छाले परे॥ कवि ‘ठाकुर ऐसी कहा कहिये, निज प्रीति …
प्रात झुकाझुकी भेष छपाय कै, लै गगरी जल कों डगरी ती । जानी गई न कितेकऊ वार तें, आन जुरे, जहाँ होरी धरी ती ॥ ’ठाकुर’ दौरि परे मोहिं …
धनि हैँगे वे तात औ मात जयो जिन देह धरी सो घरी धनि हैँ । धनि हैँ दृग जेऊ तुम्हैँ दरसैँ परसैँ कर तेऊ बड़े धनि हैँ । धनि …
दस बार, बीस बार, बरजि दई है जाहि, एते पै न मानै जो तौ, जरन बरन देव। कैसो कहा कीजै, कछू आपनो करो न होय, जाके जैसे दिन, ताहि …
तन को तरसाइबो कौने बद्यौ, मन तौ मिलिगो पै मिलै जल जैसो। उनसैं अब कौन दुराव रह्यो, जिनके उर मध्य करो सुख ऐसो॥ ‘ठाकुर या निरधार सुनौ, तुम्हैं कौन …
ठारहे घनश्याम उतै, इत मैं पुनि आनि अटा चझिांकी। जानति हौ तुमं ब्रज रीति, न प्रीति रहै कबं पल ढांकी॥ ‘ठाकुर कैसें भूलत नाहिनै, ऐसी अरी वा बिलोकनि बांकी। …
ठाढ़ी रहो, डगो न भगो, अब देखो जो है कछु खेलत ख्यालहिं । गावन दै री, बजावन दै सखी, आवन दै इतैं नंद के लालहिं ॥ ’ठाकुर’ हौं रँगिहौं …
जौँ लौँ कोऊ पारखी सोँ होन नहिँ पाई भेँट तब ही लौँ तनक गरीब सोँ सरीरा हैँ । पारखी सोँ भेँट होत मोल बढ़ै लाखन को गुनन के आगर …
जिन लालन चाह करी इतनी, तिन्हैं देखिबे के अब लाले परे॥ अब का समुझावती को समुझै, बदनामी के बीजन ब्वै चुकी री। इतनों बिचार करो तो सखी, यह लाज …
चारहू ओर उदै मुखचँद की चाँदनी चारु निहार ले री । बलि जो पै अधीन भयो पिय प्यारो तो एतो बिचार बिचारि ले री । कवि ठाकुर चूकि गयो …
केसर सुरंग हू के रंग में रंगौगी आजु, और गुरु लोगन की लाज कों पहेलिवौ । गाइवौ-बजाइवौ जू, नाँचिवौ-नँचाइवौ जू, रस वस ह्वैके हम सब विधि झेलिवौ ॥ ’ठाकुर’ …
कानन दूसरो नाम सुनै नहीं, एक ही रंग रंग्यो यह डोरो। धोखेहु दूसरो नाम कढ़ै, रसना मुख काढ़ि हलाहल बोरो॥ ‘ठाकुर’ चित्त की वृत्ति यही, हम कैसेहूँ टेक तजैं …
अब का समुझावती को समुझै बदनामी के बीज तो बो चुकी री । तब तौ इतनौ न बिचार कयो इहिँ जाल परे कहु को चुकी री । कहि ठाकुर …