साखी विनय कुमार 28/03/2012 तेग बहादुर No Comments सुख दुख जिह परसै नहीं, लोभ मोह अभिमान। कहु नानक सुन रे मना, सो मूरत भगवान॥ उसतुति निंदा नाहिं जिहि, कंचन लोह समान। कहु नानक सुन रे मना, मुकत … [Continue Reading...]
काहे रे बन खोजन जाई विनय कुमार 28/03/2012 तेग बहादुर No Comments काहे रे बन खोजन जाई। सरब-निवासी सदा अलेपा तोही संगि समाई ॥ पुहुप मध्य जिऊँ बासु बसतु है, मुकुर माहिं जैसे छाँईं। तैसे ही हरि बसे निरंतर, घट ही … [Continue Reading...]