Category: तरुण भटनागर
अब्र का टुकड़ा रूपहला हो गया चाँदनी फूटेगी, पक्का हो गया इक ख़ता सरज़द हुई सरदार से दर-ब-दर सारा क़बीला हो गया धूप की ज़िद हो गई पूरी मगर …
सूरजमुखी का खेत, सुबह से शाम तक, सूरज के साथ-साथ, अपना चेहरा घुमाता हुआ। वह शायद नहीं जानता, कि पूरी पृथ्वी भी, सूरज के सामने, हमेशा अपना चेहरा नहीं …
पुलिन को धोने में, लहरों की हर वापसी के बाद, रेत पर चमचमाती परत, मानों- लकड़ी पर वानिर्श, इलेक्टरोप्लेटिंग साल्यूशन से हाल निकली सोने की प्लेट, रोने के बाद …
वह मिटा, कि मेरा घर आंगन, यतीम, गुमनाम बना। तपी न था कोई, तभी तो नहीं बना, वह बोधि वृक्ष। पर वह, कड़वा नीम आंगन वाला, अब चिपका है, …
उस रोज ध्यान से देखा था, चौराहे वाले फव्वारे को, क,ि ऊपर उछलना आैर हवा में बारीक बूंदों में बंटकर बहना, फव्वारे की नियती नहीं है, बल्िक पाइपों आैर …
मौत से बस एक कदम पहले, डूबते सूरज के पास जाते हुए, देखी थी, क्षितिज रेखा, फैले आकाश, आैर सिकुड़ी जमीन के बीच। शांत बादलों, आैर अपने शहर के …
बरसाती नाला आैर आकाश, हमेशा लड़ते रहते हैं, बादलों के लिए ़ ़ ़। पर अक्सर मैं, उस लड़ाई को, गमिर्यों में ही जान पाता हंू, जब लड़ाई में …
जिनमें से किसी एक को, बहुत ध्यान से देखने पर भी आंख पकड़ नहीं पाती है। बरसों से, तुम आैर मैं, लोहे की पटरी पर टरेन का पिहया, लोहे …
जब बचपन के घर से, माता-पिता के घर से, बाहर चला था, तब खयाल नहीं आया, कि यह यात्रा एक आैर घर के लिए है, जो निलर्ज्जता के साथ …
जब बंद होती हैं, आंखें, तब एक दीवार, लाल, काली सी। जब खुली होती है आंख, तब एक खिड़की, मनचाही सी। जब बंद होती है, आंख, मैं चाहकर, मंुह …
दूसरी चीजों की तरह, पुराना नहीं होता है, पुराना एलबम, वह जैसे-जैसे पुराना होता जाता है, बदलते जाते हैं, उसमें चिपकी पुरानी ब्लैक एण्ड व्हाइट तस्वीरों के मायने। पुराने …
उसका इंतज़ार था। हमारी इच्छा, हमारा स्वार्थ, सो किया उसका इंतज़ार। पर हज़ारों मील दूर से, समुद्र की नम आर्द्र हवा, काले घने बादल, चक्रवात, घूमते बवण्डर, वह कभी …
अगर – रक्त बफर बन जाता, हृदय रूक जाता हाइपोथर्मिया से, गल जातीं उंगलियाँ, अकड़कर, कड़कड़ा जाता पूरा शरीर, क्या तब भी, सूरज निर्दोष बरी हो जाता? अगर तेज़ …
जिस पर सूख रहे हैं- चीथड़े ़ ़ ़। बरसों बाद, जो चिंिदयां रही हैं, उन्हें, धोकर, सुखाकर, प्रेसकर ़ ़ ़ पहरने का, एक सुकून है। हां, एक …
रोज सुबह, बिना नागा, वह पहंुच जाता है, नुक्कड़ वाले चौराहे पर बेचने चाय। दो रूपये वाली उसकी चाय, भगा देती है, रात की बची नींद, नींद का बचा …
गुलदस्ते में, मुरझाने से पहले, चंद घण्टे जीते हैं, तने से कटे, एस्टर आैर कारनेशन के फूल। जैसे छिपकली की पंूछ, धड से अलग होने के बाद, फड़फड़ाती है, …
इस जगह से जो क्षितिज दिखता है, वह सीधी रेखा वाला क्षितिज नहीं है, उस क्षितिज की रेखा ऊंची-नीची हो गई है। एक चौरस शीषर् वाले पहाड ने, बीच …
कभी, किसी बासी चादर में संूघंूगा, उस पर गुजरी, सुख भरी नींद की गंध। कभी, पेपरवेट के नीचे दबे, थप्पी भर कागज, बह जाएंगे, उसी हवा में, जिसमें वे …
उनकी यादें, टूटते तारे की तरह आती हैं, जिसे देखकर, मैं कुछ मांगता हंू, सुना है, यंू मांगने से बात पूरी होती है। उनकी यादें, दबे पांव आती हैं, …
आदमी प्रश्न नहीं पूछता, आैर ना ही मेरे प्रश्नों का जवाब देता है, पर मैं बहुत से प्रश्न आैर जवाब देने को आतुर रहा हंू मरने से पहले, मुझे …
एक बहुत बड़े मैदान के बीच, खड़ा है, एक अकेला पेड़। उस पेड़ की कोई बस्ती नहीं। उस पेड़ का कोई जंगल नहीं। पर, वह यंू ही अकेला नहीं …