Category: ठाकुरप्रसाद सिंह
नदी किनारे बैठ रेत पर घने कदम्ब के तले होगे बजा रहे वंशी तुम मेरे प्रिय साँवले एक हाथ से दिया बारूँ एक हाथ से आँखें पोंछूँ सोचूँ मुझसे …
तुमने क्या नहीं देखा आग-सी झलकती में तुमने क्या नहीं देखा बाढ़-सी उमड़ती में नहीं, मुझे पहचाना धूल भरी आँधी में जानोगे तब जब कुहरे-सी घिर जाऊँगी मैं क्या …
गाँव के किनारे गाँव के किनारे है बरगद का पेड बरगद की झूलती जटाएँ कैसी रे झूलती जटाएँ झूलें बस भूमि तक न आएँ । ऐसे ही लडके इस …
पात झरे, फिर-फिर होंगे हरे साखू की डाल पर उदासे मन उन्मन का क्या होगा पात-पात पर अंकित चुम्बन चुम्बन का क्या होगा मन-मन पर डाल दिए बन्धन बन्धन …
मेरे घर के पीछे चन्दन है, लाल चन्दन है। तुम ऊपर टोले के मैं निचले गाँव की राहें बन जाती हैं रे कड़ियाँ पाँव की, समझो कितना मेरे …
यह बादल की पहली बूँद कि यह वर्षा का पहला चुम्बन स्मृतियों के शीतल झोकों में झुककर काँप उठा मेरा मन। बरगद की गभीर बाँहों से बादल आ आँगन …