Category: सूरज विजय सक्सेना
यह रचना उन जवानों की याद दिलाती है जो किसी महायुद्ध में अपने वतन को खोकर किसी और वतन में सालों से बंदी हैं। अगर उन में से कोई …
विष बोली कर श्रवण मैं, सांस ना मिले इस पवन में, ऊंच नीच देख लोक काल, उलझाये मुझे मेरे स्वपन जाल, अगर उठाये मैंने वदन बचाव में, करना पड़ा …
जब चाह न हो कोई मन में, जब कोई राह न हो समक्ष, अक्स हो कुछ धुँधला धुँधला, जब हो न कोई पक्ष विपक्ष, शख्स कोई दूर खड़ा आंसू …