Category: सुधाकर राजेन्द्र
एक रात मुझसे मेरी ग़ज़ल बोलने लगी जीवन के दर्द की गाँठ खोलने लगी अथाह समुन्दर में ले टूटी सी एक नाव मझधार में हिम्मत को मेरी …
साथी कोई साथ न दे तब भी हम तेरे साथ हैं तुमने जो शुभ कर्म किया इसलिए आज हम साथ हैं कदम बढ़ाओं मंजिल का पथ कब …
महलों की ना बात करो हम झोपड़ियों में रहते हैं फूलों की ना बात करो काँटों की चुभन हम सहते हैं लूट गए कलियों की खुशबू और …
लगा दो आग दुनियां में ये दुनियां है हीं ऐसी हीं डूबा दो इसको पानी में ये दुनियां है हीं ऐसी हीं कहो जाकर के दिनकर से …
आदमी अब जानवर से भी है बदतर हो गया आदमीयत भीड़ में जाने कहाँ है खो गया आदमी के रूप में अब घूमता है भेड़िया जानवर का …
धूप में मोम सा वो पिघल जाते हैं आग में जल के भी हम निकल जाते हैं वो रात भर चाँद से माँगते चाँदनी बन सुबह का …
मत दिखलाओ हाथ ज्योतिषी झूठा है भाग्य रेखाओ के फेरा ने लूटा है उसने कहा था तुम पर ना कोई संकट है पर कल ही तो पैर …
घर को हीं आग लग गई घर के चिराग से क्योंकि न हमने रखे थे दीपक सम्हाल के अपने हीं कुल्हाड़ी से घायल हुए खुद पाँव अपने …
अब हाथ न फैलाओ अपने हक के वास्ते इसे मुट्ठियां बनाओं तो खुल जाएं रास्ते होठों पर इन्कलाब हो करने को कुछ अरमान मंजिल करीब आए हैं …
चाँद उनको किसी का है मुखड़ा लगे चाँद मुझको तो रोटी का टुकड़ा लगे चाँद उनके लिए हो कलंकित भले चाँद मुझको तो साफ और सुथरा लगे …
यही है सच कि हम तो चले जायेंगे मेरे ये गीत ग़ज़ल लोग गुनगुनायेंगे मेरी ग़ज़ल नहीं है कोठे और महलों की इसको तो खेत खलिहानों में …
वो सिक्कों से बेचते हैं इमान अपना हम न रूपयों से बेचेंगे दलान अपना माना कि पैसा कुछ है मगर सब कुछ नहीं मैं ना सोने से …
दोस्त दुश्मन बन के मेरे दिल में डाका दे गया खंजरों से काढ़ कर मेरा कलेजा ले गया रौंद डाला दोस्ती के बाग के सब फूल को खिल …
जब कलम को हथियार बनाया हमने जीत कर समर में हर वार दिखाया हमने हमें मारने को हरदम हथियार लिए फिरते हैं उन्हें मारने को यही समाचार …
दर्द इतना गहरा है कि सो न सका हूँ पीड़ा इतनी गहरी है कि रो न सका हूँ आँखों में लाली क्यों है जब तुमने पूछा मैंने …
हमीं को मारनें को हम से, हथियार मांगते हैं करने को वार हम पर तलवार माँगते हैं नकली लगा के चेहरा कहते कि हम हैं अपने नफरत …
इन मजलूमों की बस्ती में एक बीज क्रांति का बोना है जो खून चूस कर जीता है उसका हीं लहू तो पीना है जो हमको कहता राढ़, …
आँखों के समदर में तूफान हैं आंसू खुशियां और कभी गम के पैगाम हैं आँसू नयनों की नदी में सुख-दुख दो कोर किनारे हैं जीवन के अविरल …
दोस्त दुश्मन बन के मेरे दिल में डाका दे गया खंजरों से काढ़ कर मेरा कलेजा ले गया रौंद डाला दोस्ती के बाग के सब फूल को खिल रहे …
ये कौन बहाता है, किसका ये पसीना है खेतों को कहे मक्का खलिहान मदीना है. जो ख़ून बना पानी प्यासों को तृप्ती दे दुख-सुख में जो जीता उसका …
जिसने मेरे बहार को पतझड़ बना दिया कलियों को श्राप दे के पत्थर बना दिया. वो माँगते हैं आज हमसे चमन की खुशबू तो हमने उन्हें ठूंठ सा …
फूल से खूशबू कली से मुस्कुराहट छीन ली उसने मेरे होठ से भी गुनगुनाहट छीन ली किस तरह हम जी रहे हैं बेरहम के गाँव में मेरे दरवाजे …
धधक रही है आग हमार तन के ख़ून पसीने में बदहाली को देख देख के आग लगी है सीने में. तड़प रहे हैं बच्चे भूखे और भूख से …
वो मर गये जो मौत से घबरा के मर गए हैं वो अमर जो मौत से टकरा के मर गए मर-मर के जो मरे नहीं वो हैं कहां …
उठा है वक्त के हाथों में ख़ंजर देख रहा हूँ. जहां उगते थे गेहूं धान बंजर देख रहा हूँ. जहां बहती थी नदियां कलकलाती दूध् सा पानी वहां …