Category: संजीव कालिया ‘संजू’
जो दुल्हन की तरह सजी चली आ रही है l मेरे ख्वावों,ख्यालों की ताबीर है ll चन्द ऱोज पहले हम गए थे उसके शहर में, और अपना सर्वस्व लुटा …
भुला बिसरा कोई पंछी तेरे चमन में आ गया l जी लेने दो दुनियां वालो छीनों न मुझ से फ़िजा ll सोचा था जाऊंगा वहा पर, है सात दरिया …
कौतुहल था कल मेरे घर में, कितना है आज बिराना l बुझी-बुझी सी शमां है हर तरफ़ भटक रहा है परबाना ll सैलाब क्या आया बहा कर ले गया …
भले ही वो प्यार पल भर के लिए ही था, किसी ने हम से प्यार निभाया तो है l तह दिल से उस हसीना का, शुक्रिया अदा करते है …
साथ के बिस्तर पर पापा सोए थे, और रात के तीसरे पहर उसकी याद आ गई, मैं करबटें बदलने लगा और सोचने लगा l यह मुझे क्या हो गया …
तुम मेरी सोच हो, मेरी कल्पना हो तुम l तुम फूल हो मन्दिर का, अँधेरी रात कि शमां हो तुम ll तुम मेरी कविता हो तुम नहीं तो कविता …
निकले थे घर से घूमने, मगर दिल को घुमा न पाए l और हम लौट आए ——- इंडिया गेट देख रहे थे लोग, पढ़ रहे थे, कब बना और …
हम भटकते ही रहे अन्धेरों की गुफाओ में, यहाँ नहीं पहुँच पाई, उजालें की किरण चाह कर भी l या शायद हम ने नहीं देखना चाहा उजाला l हम …
रोना नहीं मेरे दोस्तों, हमें हँसना है और हँसाना है l भले ही लाख गम आए हमारी राहों में, हर पल जशन मनाना है ll रोना नहीं मेरे दोस्तों …
मेरे दिल के आईने में एक छवि सी बनी जाती है l मैं जितनी मिटने की कौशिश करता हूँ, बो उतनी ही नज़र आती है l मेरे दिल के …
भले ही आज शून्य है बजूद हमारा, पर यह जरुरी तो नहीं- कि जिन्दगी के हर दौर में यह शून्य आगे लगे और सब शून्य हो जाए l इंशाल्ला …
बीते युग का अनुयायी अब तो गुरु घंटा कहलाये है समर्थन l जो पहले हुआ करता था लकीर का फकीर कभी, अब तो फकीर को भी लकीर दिखलाए है …
बेरोजगार हूँ l रोजगार मिले तो कुछ सुकून मिले भले ही कोमल हाथ सख्त हो जाए, छाले पड़ जाए, काले हो जाए चाहे मेरे कपड़े l नीरस जिन्दगी में …
यह बही सूरज है जिसे हर सुबह सलाम होता है जब ढलती है उम्र, तो उसका अपमान होता है l उठते थे जो हाथ कभी सजदा करने के लिए, …