Category: संजय कुमार मौर्य
उड़ना चाहता हूं अंबर में मन की पाखों से आस पास के वृक्षों पर बैठ लचकती हिलती शाखों से । कि जैसे उड़तें हैं खग कुल दूर दूर तक …
रात को जब बिल्ली बर्तन गिराती है तब माॅ भय से जाग जाती है कि बिल्ली – पी जाएगी सारा दूध बच्चे की तब कैसे मिटेगी भूख बच्चे की …
तू किनारे से हाथ देगा मुझे लगता नहीं तू मेरा साथ देगा मुझे लगता नहीं ऐ मौत कभी तो आएगा इतना मुकर्रर है मगर मुझे मात देगा मुझे लगता …
उसका बदन छूकर कोई बयार आएगा फिर खामोश आॅखों में प्यार आएगा ओ पराई चीज है उसे ेमत ही ले तू बदनामी होगी अगर चैकीदार आएगा यूं न देख …
आओ तूफानों में नाव चलाया जाए अपनी मकसद लहरों से बताया जाए इन जिन्दा गलियों में खामोशी क्यों है मन झूमे ऐसा गीत कोई सुनाया जाए बहुत हुआ खेल …
हमने रेत पर तेरा नाम उतारा दिल को जब याद तेरी आई तो कदम यों ही मेरे बढ़ते चले गए मन में जब आवाज तेरी आई तो जिन्दगी कितनी …
इस लीक से हटकर मुझे चलना ही है मैं बदला तो नहीं मगर बदलना ही है अब जब सियासत में आ ही गए हैं तो सरे बाजार में नाम …
तेरे जिस्म में रुह कितना आजाद है हमसे पूछ किसी मसले का क्या निजाद है हमसे पूछ तुझे क्यों लगा कि उसका एहसान है तेरा होना तेरा होकर जीना …
ये जो मासूम बच्ची छटपटा रही है मर रही है कोख में केवल इसलिए कि – इस ईश्वर प्रदत्त अनमोल कृपा को माता पिता अब समझने लगे है अभिशाप …
इस लीक से हटकर मुझे चलना ही है मैं बदला तो नहीं मगर बदलना ही है अब जब सियासत में आ ही गए हैं तो सरे बाजार में नाम …
तुम क्यूं न अति दूर चली जाओ तुम्हें क्यू न एक बेहतर साथी मिले मुझसे । तुम्हे क्यूं न बहुत प्यार मिले। तुम्हे क्यूं न वो खुशियों का संसार …
इस लीक से हटकर मुझे चलना ही है मैं बदला तो नहीं मगर बदलना ही है अब जब सियासत में आ ही गए हैं तो सरे बाजार में नाम …
मेरी बर्बादी में कल तुम भी तो शामिल थे दुश्मनों की आबादी में कल तुम भी तो शामिल थे वाह तुम गवाह हो गए उस मजलूम की तलाक पे …
तेरे जिस्म में रुह कितना आजाद है हमसे पूछ किसी मसले का क्या निजाद है हमसे पूछ तुझे क्यों लगा कि उसका एहसान है तेरा होना तेरा होकर जीना …
रेत पे नाम लिखा व मिटा डाला उसने मैं खिलौना था आखिर बता डाला उसने पन्ने-पन्ने पे दिल की खूॅ से जज्बात भरा वो मुहाबत का सारा खत जला …
आओ तूफानों में नाव चलाया जाए अपनी मकसद लहरों से बताया जाए इन जिन्दा गलियों में खामोशी क्यों है मन झूमे ऐसा गीत कोई सुनाया जाए बहुत हुआ खेल …
उसका बदन छूकर कोई बयार आएगा फिर खामोश आॅखों में प्यार आएगा ओ पराई चीज है उसे मत ही ले तू बदनामी होगी अगर चैकीदार आएगा यूं न देख …
तू किनारे से हाथ देगा मुझे लगता नहीं तू मेरा साथ देगा मुझे लगता नहीं ऐ मौत कभी तो आएगी इतना मुकर्रर है मगर मुझे मात देगा मुझे लगता …
अभी अभी गुजरा है रुढि़यों का अंधविश्वासों का गुलामी का तानाशाही का गटर के कीड़ों के मानिंद उफनते इंसानी मूल्यों का इतिहास। अब बन रहा है अमीरों के कदमों …
कभी तो याद तेरी पलकों को भिगोएगी न सही महफिल में, तन्हाई में रोएगी रूठकर कतराने लगी मुझसे मेरी परछाइयां सीने में कांटों सी तरह चुभने लगी तन्हाइयां गम …
हम वो ईंट हैं जो आवा में तपके फौलाद हुए बचपन से ही मम्मी पापा का प्यार तो मिला हर चीज सहज में ही तो सुलभ हुआ जब चाहा …
अपना कोई पथ नहीं और न हो कोई लक्ष्य सखा की भी आवश्यकता नहीं अकेले अग्रसर होते जाना है बेधड़क अभय होकर परन्तु किधर कुछ भी ज्ञात नहीं मुझे …
क्षण क्षण अनुभव करता रहता हृदय मनहर सी छाप छोड़ती बातें जो अन्तःकरण को प्रेम में विकल कर जाते स्नेह प्रीत की एक छोटी सी सुन्दर मनभावन सी बगिया …
जब निवाले तक के लिए करना था मोहताज तो हड्डियों के ढांचे में के आवरण में सागर सा गहरा नितान्त अतृप्त जो मजबूरियों से परे हो अपनी आवश्यकताओं के …
कोई अनुभव नित सर पर मंडराएगा प्यारे निशा की गोद में हँसता चाँद जगाएगा प्यारे कोसों दूर तक गगन में तारों की टिमटिम काली ओढ़नी पर जैसे सितारों की …