Category: संदीप सिंह
मुझसे पूंछता है रात का ये सन्नाटा होगी आखिर सहर कब होगी ? कब जलेगा वो आग का गोला ? आखिर कब वो पहर होगी ? कब तक बनाएं …
कितनी मायूस हो उम्मीदे हज़ार गुज़री है गुजरी कितनी बेरंग अब के बहार गुज़री है ठहरी वक्त के परों पे पल दो पल के लिए गयी तो शाम ऐ …
वक़्त के दरिया में कोई ठहर जाता तो नही जैसे तुम गए ऐसे भी कोई जाता तो नही ख़्वाब कितना ही हसीं हो मगर फिर भी ख़्वाब तो ख़्वाब …
अब रहने भी दे ये बातें थी क्या बातें जो होती थी कुछ हम आँखों से कहते थे कुछ तुम आँखों से सुनती थी वो खुश्क लबो के आहट …
ये उसूल-ए-मोहब्बत है ऐ दिले नादाँ किसी को चाहो तहे-दिल से अगर न हो हासिल उस ज़ुल्फ़ की रानाइया न सही कटे न उसके नर्म दामन की पनाहों में …
ऐ गुनाहो के ख़ुदा मुझपे इतना करम कर दे मेरे दिल को कोई दर्द दे मेरी आँखे नम कर दे मेरे दिल को बड़ा नाज़ है तेरे वादें वफ़ा …
न थी किस्मत तुझे पाने की न हौसला था तुझे खोने का सो हमने भी ए काफिर तेरे ख़याल ही से दिल्लगी कर ली..